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सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में
इस समूची समाजशास्त्रीय समालोचना का आधार वह स्मृतियों में प्रतिपादित धर्म या त्रिवर्ग का धर्म है। जैन, बौद्ध, सांख्य और वेदांत ने जिस धर्म का प्रतिपादन किया है उसके विषय में इस प्रकार की समालोचना नहीं की जा सकती। इनके द्वारा प्रतिपादित धर्म शाश्वत सत्य की व्याख्या है। उसकी परिवर्तनशील समाज-व्यवस्था में कोई हस्तक्षेप नहीं है। धर्म के नाम पर समाज-व्यवस्था का प्रतिपादन नहीं किया जा सकता। परिवर्तनशील तत्त्व को अपरिवर्तनशील तत्त्व के नाम से प्रचारित करने पर रूढ़िवादिता पैदा होती है। स्मृतिकारों ने परिवर्तनशील समाज-व्यवस्था का विधान किया। यदि उसका प्रस्तुतीकरण शाश्वत सत्य के रूप में नहीं होता तो धर्म का रूढ़िवादी रूप हमारे सामने नहीं होता। स्त्रियों की हीनता का प्रतिपादन भी स्मार्त धर्म की समाज-व्यवस्था का अंग है। शाश्वत धर्म से उसका कोई सम्बंध नहीं है।
महावीर ने कर्मवाद की सबसे अधिक व्याख्या की है। उनका कर्मवाद इस बात का समर्थन नहीं करता कि गरीब-गरीब ही रहेगा और उसे अपना कर्मफल भोगने के लिए अमीरों के द्वारा किए गए शोषण को सहन करना पड़ेगा। गरीबी
और अमीरी सामाजिक अवस्थाएं हैं। इनका संबंध समाज की व्यवस्था से है, कर्मवाद से नहीं है।
महावीर ने परुषार्थ का प्रतिपादन किया। उनके धर्म में आलस्य और अकर्मण्यता को कोई स्थान नहीं है। पुरुषार्थ के द्वारा कर्म के परिणामों में भारी परिवर्तन किया जा सकता है।
महावीर ने अहिंसा को सर्वोच्च धार्मिक मूल्य दिया। उनका सूत्र है-अहिंसा धर्म है, धर्म के लिए हिंसा नहीं की जा सकती। धर्म की रक्षा अहिंसा से होती है, धर्म की रक्षा के लिए हिंसा नहीं की जा सकती।
महावीर ने घोषणा की—मनुष्य जाति एक है। जातीय भेदभाव, घृणा और छुआछूत—ये हिंसा के तत्त्व हैं । अहिंसा धर्म में इनके लिए कोई अवकाश नहीं है।
महावीर ने धर्म के तीन लक्षण बतलाए-अहिंसा, संयम और तप। ये तीनों आत्मिक और वैयक्तिक हैं । इनसे फलित होने वाला चरित्र नैतिक होता है । राग-द्वेषमुक्त चेतना अहिंसा है। यह धर्म का आध्यत्मिक स्वरूप है। जीव की हिंसा नहीं करना, झठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, परिग्रह नहीं रखना—यह धर्म का नैतिक स्वरूप है। राग-द्वेष-मुक्त चेतना आत्मिक स्वरूप ही है। वह किसी दूसरे के प्रति नहीं और उसका सम्बन्ध किसी दूसरे से नहीं है । जीव की हिंसा नहीं करना---यह दूसरों के प्रति आचरण है। इसलिए यह नैतिक है । नैतिक नियम धर्म
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