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________________ सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में अवकाश था। समाजवादी समाज-व्यवस्था राज्य-सत्ता से शासित है. इसलिए इसमें सम्पत्ति पर समाज का प्रभुत्व है। उसमें व्यक्तिगत स्वतन्त्रता सीमित हो जाती है । मोक्ष-धर्म से प्रभावित समाज-व्यवस्था करुणा-शासित होती है। इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संग्रह पर अंकुश-दोनों फलित हो सकते हैं। किन्तु इसके लिए सामाजिक चरित्र की ओर अधिक उदात्त करने की अपेक्षा है।। __ क्या अनेकांत के द्वारा समाज-व्यवस्था और मोक्ष-धर्म की एकता स्थापित नहीं की जा सकती? क्या हिंसा और अहिंसा, परिग्रह और अपरिग्रह में अविरोध स्थापित नहीं किया जा सकता? अनेकांतवादी समन्वय और सापेक्षता के द्वारा विरोध में अविरोध की व्याख्या करते हैं, इसलिए यह प्रश्न होना स्वाभाविक है। किन्तु हम इस तत्त्व की उपेक्षा कर अनेकांत को नहीं समझ सकते कि जिस गुण की अपेक्षा से विरोध होता है, उसी गुण की अपेक्षा से अविरोध नहीं होता। पदार्थ में नित्य और अनित्य-दोनों गुण अविरोधी हैं। किंतु जिस गुण की अपेक्षा पदार्थ नित्य है, उसी गुण की अपेक्षा वह अनित्य नहीं है और जिस गुण की अपेक्षा वह अनित्य है, उसी गुण की अपेक्षा वह नित्य नहीं है । किन्तु नित्य और अनित्य-दोनों गुण एक ही पदार्थ में अविरोधी भाव से रहते हैं। इसीलिए पदार्थ नित्यानित्यात्मक होता है और उस पदार्थ की सापेक्ष-दृष्टि से सामंजस्यपूर्ण व्याख्या की जा सकती है। समाज-व्यवस्था में हिंसा और अहिंसा, परिग्रह और अपरिग्रह-दोनों तत्त्व अविरोधभाव से रहते हैं। अनेकांत के द्वारा समाज-व्यवस्था और मोक्ष-धर्म की एकता स्थापित नहीं की जा सकती। हिंसा और अहिंसा तथा परिग्रह और अपरिग्रह में अविरोध स्थापित नहीं किया जा सकता किंतु समाज-व्यवस्था के साथ उनके सहावस्थान की व्याख्या की जा सकती है। हिंसा और परिग्रह को समाज-व्यवस्था से पृथक् नहीं किया जा सकता, इस अपेक्षा से समाज व्यवस्था और मोक्ष-धर्म में एकता नहीं है। समाज-व्यवस्था में हिंसा और परिग्रह की अल्पता की जा सकती है, इस अपेक्षा से समाज-व्यवस्था और मोक्ष-धर्म में एकता है। धर्म संवेदनातीत होने के कारण वैयक्तिक नहीं है, आत्मिक है। किंतु वह व्यक्ति का अपना गुण है, इस अपेक्षा से वह वैयक्तिक भी है। नैतिकता व्यक्ति का अपना गुण है, इस अपेक्षा से वह वैयक्तिक है, किंतु वह दूसरे के प्रति होती है, इसलिए सामाजिक भी है। वह सामाजिक है किंतु सामाजिक आचार-संहिता से अभिन्न नहीं है। समाज की आचार-संहिता देश-काल के भेद से भिन्न-भिन्न, परिवर्तनशील और समाज की उपयोगिता के आधार पर निर्मित होती है । नैतिकता देश और काल की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003147
Book TitleSatya ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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