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सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में
१. असंविभागी को मोक्ष नहीं मिलता, इसलिए संविभाग करो। दूसरों के
हिस्से पर अधिकार मत करो। २. अनाश्रितों को आश्रय देने के लिए तत्पर रहो।। ३. नये सदस्यों को शिक्षा देने के लिए तत्पर रहो। ४. रोगी की सेवा के लिए तत्पर रहो। ५. पारस्परिक कलह हो जाने पर किसी का पक्ष लिये बिना उसे शांत करने
का प्रयत्न करो।
सामाजिक संगठनों के लिए भी उपयोगिता कम नहीं है। ६. धर्म का स्वधर्म १. धर्म सर्वाधिक कल्याणकारी है। किन्तु वही धर्म, जिसका स्वरूप अहिंसा,
संयम और तप है। २. विषय-वासना, धन और सत्ता से जुड़ा हुआ धर्म संहारक विष की भांति
खतरनाक होता है। ३. धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा और हिंसापूर्ण उपासनाएं करने वाला
अधर्म को प्रोत्साहन देता है। ४. चरित्रहीन व्यक्ति को सम्प्रदाय और वेश त्राण नहीं देते । धर्म और धर्म-संस्था
एक नहीं है। ५. भाषा का पांडित्य और विद्याओं का अनुशासन मन को शांत नहीं करता।
___मन की शांति का एक ही साधन है, वह है धर्म। निर्वाण
आत्मानुशासन के होने पर ही दूसरे शासन सफल हो सकते हैं, इस आधार-भित्ति पर महावीर ने जनमानस को धर्म-शासन में दीक्षित किया। ईस्वी पूर्व ५२७ में उनका निर्वाण हुआ। निर्वाण से पूर्व भगवान् ने दो दिन का उपवास किया। उस अवधि में वे धर्म का प्रवचन करते रहे। पर्यंकासन में बैठे हुए कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। मल्ल और लिच्छवि गणतंत्र के शासकगण और जनता ने दीप जलाकर निर्वाण-उत्सव मनाया। ज्योति की स्मृति में ज्योतिपर्व संस्थापित हो गया। .
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