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भगवान् महावीर : जीवन और सिद्धान्त गृहवास के तीस वर्ष
ढाई हजार वर्ष पुराना भारत दो राजनीतिक प्रणालियों में बंटा हुआ था। मगध, अंग, बंग, कलिंग, वत्स, अवन्ती, उत्तरी कौशल आदि राजतन्त्र की प्रणाली से शासित थे। वैशाली में लिच्छवि, कपिलवस्तु में शाक्य, कुशीनारा और पावा में मल्ल गणराज्य था। वहां की जनता गणतंत्र की शासन-प्रणाली से शासित थी। राजतंत्र की प्रणाली में राजा ईश्वर का अवतार माना जाता था। गणतंत्र की प्रणाली में शासक मात्र मानव समझा जाता था । महावीर वैशाली गणतंत्र के शासक-सदस्य श्री सिद्धार्थ के पुत्र थे। उनकी माता का नाम त्रिशला था। क्ष यकुण्डग्राम वैशाली का उपनगर था। उस पुण्यभूमि में महावीर ने जन्म लिया था ईस्वी पूर्व ५९९, ३० मार्च (चैत्र शुक्ला त्रयोदशी) को उनका जन्म हुआ था। उनका शैशव कैसा था, यौवन कैसा था, इस विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है। महावीर जीवन के अट्ठाईस वर्ष पूर्ण कर रहे थे, तब उनके माता-पिता स्वर्गवासी हो गए। उन्होंने श्रमण होने की भावना प्रकट की। उनके चाचा सुपार्श्व और बड़े भाई नन्दिवर्धन ने कुछ वर्षों तक घर में रहने का अनुरोध किया। महावीर की विनम्रता उसे अस्वीकार नहीं कर सकी
और उनका संकल्प गृहवास को स्वीकार नहीं कर सका। इस अन्तर्द्वन्द्व ने एक नए मार्ग की खोज की। शायद यहीं उन्होंने यह सूत्र निर्मित किया होगा जिसकी वासना नहीं छूटी और श्रमण हो गया। वह घर में नहीं है पर घर से दूर भी नहीं है। वासना से मुक्त होकर घर में रहते हुए भी घर से दूर रहा जा सकता है। वे दो वर्ष तक घर में रहते हुए घर से दूर रहे । इस अवधि में उन्होंने विदेह-साधना की।
वे परिवार के बीच रहकर भी एकान्त में रहे । जिसके शरीर में आसक्ति नहीं रहती, वह समुदाय में रहकर भी अकेला रह सकता है।
उन्होंने अस्वाद का विशिष्ट अभ्यास किया । जिसे देहातीत अवस्था में रस का अनुभव हो जाता है, उसे अस्वाद की उपलब्धि करने में कठिनाई नहीं होती।
वे मौन और ध्यान में लीन रहे । जिसके लिए बाह्य जगत् में अभिव्यक्त होने
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