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तत्त्ववाद
भगवान् ने कहा-'आदमी श्वास लेता है, सोचता है, बोलता है, खाता है—यह सब पुद्गल के आधार पर हो रहा है । श्वास की वर्गणा (पुद्गल समूह) है, इसलिए वह श्वास लेता है। मन की वर्गणा है, इसलिए वह सोचता है। भाषा की वर्गणा है, इसलिए वह बोलता है। आहार की वर्गणा है, इसलिए वह खाता है। ये यदि वर्गणाएं नहीं होती तो न कोई श्वास लेता, न कोई सोचता, न कोई बोलता और न कोई खाता । जितने दृश्य तत्त्व हैं, वे सब पुद्गल की वर्गणाएं हैं । पुद्गलास्तिकाय का स्वरूप एक है, फिर भी कार्य के आधार पर उसकी अनेक वर्गणाएं हैं। उसे एक उदाहरण के द्वारा समझा जा सकता है। एक ग्वाला भेड़ों को चराता था। वे अनेक लोगों की थीं। उसे गिनती करने में कठिनाई होती थी। उसने एक रास्ता निकाला। एक-एक मालिक की भेड़ों का एक-एक वर्ग बना दिया और उन्हें एक-एक रंग से रंग दिया। उसे सुविधा हो गई। यह वर्गणाओं का विभाजन भी कार्यबोध की सुविधा के आधार पर किया गया है । जीव की जितनी भी प्रवृत्ति होती है, वह पुद्गल की सहायता से होती है। यदि वह नहीं होता तो कोई प्रवृत्ति नहीं होती। सब कुछ निष्क्रिय और निवार्य होता ।
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