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तत्त्ववाद
इस जगत् में जो है वह तत्त्व है, जो नहीं है वह तत्त्व नहीं है । होना ही तत्त्व है, नहीं होना तत्त्व नहीं है । तत्त्व का अर्थ है-होना।
विश्व के सभी दार्शनिकों और तत्त्ववेत्ताओं ने अस्तित्व पर विचार किया। उन्होंने न केवल उस पर विचार किया, उसका वर्गीकरण भी किया। दर्शन का मुख्य कार्य है-तत्त्वों का वर्गीकरण ।
नैयायिक, वैशेषिक, मीमांसा और अद्वैत-ये मुख्य वैदिक दर्शन हैं। नैयायिक सोलह तत्त्व मानते हैं । वैशेषिक के अनुसार तत्त्व छह हैं। मीमांसा कर्म-प्रधान दर्शन है। उसका तात्त्विक वर्गीकरण बहुत सूक्ष्म नहीं है। अद्वैत के अनुसार पारमार्थिक तत्त्व एक परम ब्रह्म है। सांख्य प्राचीनकाल में श्रमण-दर्शन था और वर्तमान में वैदिक दर्शन में विलीन है । उसके अनुसार तत्त्व पचीस हैं । चर्वाक दर्शन के अनुसार तत्त्व चार हैं। . ____ मालुंकापुत्र भगवान् बुद्ध का शिष्य था। उसने बुद्ध से पूछा-मरने के बाद क्या होता है ? आत्मा है या नहीं? यह विश्व सान्त है या अनन्त ?' बुद्ध ने कहा- 'यह जानकर तुम्हें क्या करना है?'
उसने कहा-'क्या करना है, यह जानना चाहते हैं ?' मुझे आप उनका उत्तर दें और यदि उत्तर नहीं देते हैं तो मैं दर्शन को छोड़ दूसरे दर्शन में जाने की बात सोचूं । या तो आप कहें कि मैं इन विषयों को नहीं जानता और यदि जानते हैं तो मुझे उत्तर दें । मैं सत्य को जानने के लिए आपके शासन में दीक्षित हुआ था, किन्तु मुझे मेरी जिज्ञासा का उत्तर नहीं मिल रहा है।'
बुद्ध ने कहा- 'मैंने कब कहा था कि मैं सब प्रश्नों के उत्तर दूंगा और तुम मेरे मार्ग में चले आओ।'
मालुंकापुत्र बोला-'आपने कहा तो नहीं था।'
बुद्ध ने कहा—'फिर तुम मुझे आंखें क्यों दिखा रहे हो? देखो, एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति ने बाण मारा । वह बाण से बिंध गया। अब कोई व्यक्ति आता है,
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