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७६ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र रंगीन श्वास लेना सीखें
पतंजलि ने कहा- इन्द्रियों पर ध्यान करो, बाह्य सुख मिलने लग जाएगा। जीभ पर ध्यान करो और किसी स्वाद की कल्पना करो । कल्पित स्वाद चाहे वह अंगूर का हो,संतरे का हो, स्वाद आने लगेगा । बिना मिठाई खाए मिठाई का स्वाद आने लगेगा । बाह्य विषयों को लिए बिना ही उनका स्वाद आने लगेगा । देवता मनोभक्षी होते हैं । वे पदार्थ को नहीं खाते । वे सभी रसों का आस्वाद लेते हैं । केवल मानसिक संकल्प से ऐसा स्वाद आने लगेगा । देवता ऐसा ही करते हैं । भोजन के बिना उनका शरीर भी नहीं चलता । वे वैसे पुद्गलों को जुटा लेते हैं । यदि हम मानसिक पुद्गलों को जुटा सकें, श्वास के साथ वर्ण, गंध आदि पुद्गलों को ले सकें तो ऐसा आहार हो सकता है | इससे जीवन चल सकता है | यदि हम रंगीन श्वास लेना सीख जाएं तो अनेक अपेक्षाओं की पूर्ति हो सकती है ।
श्वास में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श होते हैं, यह पहले प्रतिपादित किया जा चुका है । भगवती आगम में इसका लंबा प्रकरण है । श्वास-मार्गणा में कहा गया है कि श्वास में काला रंग भी है, नीला और पीला रंग भी है, सभी रंग विद्यमान हैं । रक्तचाप पर नियंत्रण करने में नीले रंग का प्रयोग होता है । लीवर-यकृत् को स्वस्थ करने में पीले रंग का प्रयोग होता है । इस प्रयोग से लीवर सुधरने लगता है । शरीर के प्रत्येक अवयव का अपनाअपना रंग है । वह रंग जब असंतुलित हो जाता है तब वह अवयव रोग ग्रस्त हो जाता है । उस रंग की पूर्ति से वह अवयव शक्तिशाली हो जाता
रंगों का सम्यक् ज्ञान स्वास्थ्य को प्रगट करने में अहं भूमिका निभाता है । श्वास और स्वास्थ्य का इतना गहरा सम्बन्ध है कि आज उस पर अतिरिक्त ध्यान देना आवश्यक है । महावीर ने एकेन्द्रिय प्राणियों से लेकर पंचेन्द्रिय प्राणियों के श्वास सम्बन्धी अनेक रहस्यपूर्ण जानकारियां दी हैं । पृथ्वीकाय आदि स्थावर जीवों के श्वास का क्रम क्या होता है ? उनकी श्वास प्रक्रिया का सूक्ष्मतम अध्ययन आगमों में उल्लिखित है । आज तक उस लम्बे प्रकरण को दार्शनिक और तात्विक दृष्टि से समझने का प्रयत्न किया गया, किन्तु स्वास्थ्य के संदर्भ में उस पर कोई विचार नहीं किया गया । वस्ततः श्वास शारीरिक,
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