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कर्मवाद और स्वास्थ्य ५९
कैसे होता है वेदन ?
वेदनीय कर्म के दो भेद हैं—सात वेदनीय और असात वेदनीय । इनका वेदन कैसे होता है ? शरीर एक करण है । इनका वेदन शरीर के द्वारा होता है। असात और सात-दोनों का वेदन शरीर से होता है । शरीर की ऊर्जा यदि ठीक है तो सात वेदनीय का संवेदन होगा । यदि शरीर की ऊर्जा अस्तव्यस्त है तो असात वेदनीय का संवेदन होगा, दुःख का संवेदन होगा । तैजसशरीर से स्थूल-शरीर को ऊर्जा की शक्ति प्राप्त होती है । शरीर की एक संरचना हुई है । आभामण्डल बना है । यदि यह सम्यग् स्थिति में रहता है तो सात का संवेदन होगा और यदि वह गड़बड़ा जाएगा तो असात का संवेदन होगा | मन की भी यही स्थिति है | मन भी ऊर्जा से संचालित है | हमारी जैविक ऊर्जा ठीक काम कर रही है, तैजसशरीर की ऊर्जा समीचीन है तो मन प्रसन्न रहेगा, आनन्दित रहेगा। यदि ऊर्जा समीचीन नहीं है तो मन अशान्त हो जाएगा, दुःखी बन जाएगा, बुरे विचार आने लगेंगे ।
जैसे शरीर सुख-दुःख के संवेदन का हेतु बनता है, वैसे ही मन और वाणी भी संवेदन के हेतु बनते हैं । ध्वनि के सूक्ष्म प्रकंपन भी सुख-दुःख के संवेदन में निमित्त बनते हैं । संगीत सुनने से सुख का संवेदन होता है और मातमी धुन सुनने से मानसिक दुःख का संवेदन होने लग जाएगा । हमारी ध्वनि के प्रकंपन यदि बहुत अच्छे हैं, भय मुक्त हैं तो हमें सुख का संवेदन होगा । यदि स्वयं की ध्वनि के प्रकंपन अच्छे नहीं है तो दुःख का संवेदन प्रारंभ हो जाएगा । यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है ।
संवेदन के साधन
संवेदन के चार साधन हैं— शरीर, मन, वाणी और कर्म । शरीर, मन और वाणी-यह एक भूमिका है | यह शरीर के प्रकंपनों से संबंधित है । दूसरी भूमिका है कर्म की, कर्म के प्रकंपनों की । कर्म एक करण है । यह सात वेदनीय कर्म के अनुभव का साधन बनता है तो असात वेदनीय कर्म के अनुभव का भी साधन बनता है । कर्मशास्त्रीय दृष्टि से मीमांसा करें तो सातवेदनीय कर्म अकेला सुख का साधन नहीं बनता और असातवेदनीय कर्म अकेला दुःख का निमित्त नहीं बनता। इनके साथ समवाय होता है । जहां सात वेदनीय
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