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प्रेक्षाध्यान और स्वास्थ्य १०१
फिर कुछ देर बाद सुझाव दिया-शुद्ध रक्त का संचार हो रहा है, अंगूठे का पोषण हो रहा है । दर्शन, विरेचन और पोषण—यह त्रिआयामी प्रक्रिया है। इसके द्वारा प्रत्येक अवयव को देखना शुरू करें तो हमारी काफी समस्या सुलझ जाती है ।
देखना बहुत कठिन है | कठिन इसलिए है कि एकाग्रता नहीं रहती। हम श्वास को देखते हैं, शरीर को देखते हैं, चैतन्य केन्द्र को देखते हैं। देखने की प्रक्रिया है किन्तु उससे पहले हमें साधना पड़ता है एकाग्रता को | एकाग्रता सधती चली गई तो हम निश्चित बिन्दु को ठीक से देख पाएंगे । एकाग्रता ठीक नहीं सधी है तो देखना शुरू करते ही विकल्पों का ऐसा जाल बिछ जाएगा कि देखना छूट जाएगा और हम विकल्पों में उलझ जाएंगे । देखने की कला को साधे बिना यही स्थिति बनती है। एक प्रयोग है- नासाग्र को देखना शुरू करो तो देखते ही चले जाओ। एकाग्रता से देखो | जिसने यह प्रयोग किया है, उसने अवश्य यह अनुभव किया होगा कि नासाग्र पर ध्यान करते हैं तो मूल नाड़ी पर जाते हैं, अपने आप मूल-बंध हो जाता है । यह एक सम्बन्ध है । एक अवयव को देखना शुरू किया जाता है तो उससे संबंधित सभी अवयवों में सक्रियता आ जाती है । सीखना है देखने की कला को ।
अध्यात्म का उत्कृष्ट सूत्र
भगवान महावीर ने कहा- आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो | यह अध्यात्म का उत्कृष्ट सूत्र है तो साथ-साथ स्वास्थ्य का भी बड़ा महत्वपूर्ण सूत्र है । अपने आपको देखो, इसका अर्थ है-अपने शरीर को देखो, अपने शरीर के प्रकंपनों को देखो, स्थूल प्रकंपनों को देखो, अपने शरीर में होने वाले सूक्ष्म प्रकम्पनों को देखो। अपने शरीर में होने वाले जैविक रासायनिक परिवर्तनों को देखो । अपने शरीर में होने वाले पर्यायों को देखो, उत्पाद और व्यय को देखो । हर क्षण उत्पन्न हो रहा है और विनष्ट हो रहा है । उत्पन्न और विनष्ट होते अणु को देखो ।
आचारांग सूत्र का एक महत्वपूर्ण सूक्त है— इस शरीर में होने वाले जो क्षण हैं उन क्षणों को देखो | इस क्षण में शरीर में क्या हो रहा है ! भोजन किया और पाचन हो रहा है । यह तो स्वचालित क्रिया है, कुछ करना
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