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________________ योगासन और स्वास्थ्य ९१ पर्यंका– पद्मासन । अर्द्धपर्यंका- अर्द्ध-पद्मासन | ध्यानासन : स्वास्थ्यासन दोनों प्रकार के आसन होते हैं ध्यानासन और स्वास्थ्य-आसन । कुछ आसन ध्यान के लिए उपयोगी होते हैं, जैसे सिद्धासन, वज्रासन, पद्मासन, अर्ध-पद्मासन, अर्ध-मत्स्येन्द्रासन और शरीर ज्यादा स्वस्थ हो तो नौकासन । ये ध्यानासन हैं, ध्यान के लिए उपयोगी आसन हैं । वे आसन स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होते हैं, जो रक्त संचार की प्रक्रिया को ठीक करते हैं, स्नायविक संतुलन पैदा करते हैं, स्नायविक खिचाव के द्वारा स्नायु का सम्यक् व्यवस्थापन करते हैं, रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं, मज्जा को ठीक कार्य करने में सक्षम बनाते हैं । ऐसे आसन शरीर के लिए उपयोगी होते हैं । जैन आगमों में जिन आसनों का प्रतिपादन किया गया है, उनमें दोनों प्रकार के आसन हैं । कायोत्सर्ग एक आसन है । लेटकर किया जाए तो यह बहुत सरल आसन है । बैठकर अथवा खड़े होकर किया जाए तो बहुत कठिन आसन है । कायोत्सर्ग शतक में इसका स्वरूप और लाभ विस्तार से वर्णित है । मांसपेशियों का पुनः सम्यक् स्थापन, तनाव का विसर्जन और वात, पित्त, कफ आदि से होने वाले रोगों का उपशमन- ये सारे कायोत्सर्ग के प्रभाव हैं | यह तथ्य स्पष्ट है कि आसन के साथ दोनों सिद्धान्त जुड़े हुए हैं निर्जरा अथवा आत्मशुद्धि का सिद्धान्त और स्वस्थ रहने का सिद्धान्त, शरीर को शक्तिशाली बनाए रखने का सिद्धान्त । शरीर और साधना ___ एक प्रश्न है— बौद्ध साधना पद्धति में आसन का विधान क्यों नहीं हुआ? इसका कारण भी स्पष्ट है- बौद्ध दर्शन में केवल एक दण्ड– मनोदण्ड का प्रतिपादन किया गया । बौद्धधर्म की सारी साधना-पद्धति मन के आधार पर चलती है । वहां वाक्-दण्ड और कायदण्ड का विधान नहीं है । महावीर ने तीन प्रकार के दण्ड बताए- मनोदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड | कहा गया- काया भी एक दण्ड है, उसे साधना भी जरूरी है । प्रश्न हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003146
Book TitleMahavira ka Swasthyashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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