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९० महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
महिला ने स्वास्थ्य का अनुभव किया । उसने कहा-थायरोक्सिन के स्राव को संतुलित करने की कुंजी मेरे हाथ में आ गई है । उसने इस प्रयोग से बहुत लाभ उठाया ।
रक्ताभिसरण और आसन
स्वास्थ्य का एक बहुत कारण है रक्ताभिसरण । यदि हमारे शरीर में रक्त संचार सम्यक् होता है तो किसी अवयव में दर्द अथवा पीड़ा नहीं होती। जितना रक्त संचार कम उतनी पीड़ा अधिक । जितना रक्त संचार संतुलित उतना ही पीड़ा का अभाव । इस भाषा में कहा जा सकता है रक्त संचार की अल्पता का नाम है पीड़ा | जहां रक्त जाम हो जाता है, आगे सरक नहीं पाता, वहीं पीड़ा का जन्म हो जाता है । सम्यक् रक्ताभिसरण में आसन का बहुत बड़ा उपयोग है । रक्तसंचार की जो प्रणाली है, आसन उसे सम्यक बनाए रखता है । वह रक्त का शोधन भी करता है ।
आसन और जैन आगम
_हठयोग में आसन का बहुत वर्णन है । शरीर-शास्त्र में भी आसन का विवेचन किया गया है । बौद्ध साधना पद्धति में आसन का निषेध भी किया गया है । विपश्यना के शिविर में आसन का निषेध किया जाता है । प्रेक्षाध्यान के शिविर में सबसे पहले आसन के प्रयोग कराए जाते हैं । डा० नथमल टाटिया, जो बौद्ध दर्शन के ख्यातिप्राप्त विद्वान रहे हैं, बोले—प्रेक्षाध्यान में आसनों का जो प्रयोग चलता है, वह हठयोग से लिया गया है । मैंने कहाजहां कहीं भी अच्छी चीज मिलती है, हम ले सकते हैं, किन्तु जैन आगमसाहित्य में एक स्थान पर नहीं, अनेक स्थानों पर आसनों का विस्तार से वर्णन है । ध्यान करें तो किस आसन में करें ? प्रतिमा की साधना करें तो किस आसन में करें ? मुनि बैठे तो किस आसन में बैठे ? बहुत सारे व्यक्ति, जो बैठना नहीं जानते हैं, समस्याएं पैदा कर लेते हैं ।
महावीर ने पांच निषद्याएं-बैठने की विधियां बतलाई - उत्कटुका- पुतों की भूमि से छुआए बिना पैरों के बल पर बैठना । गोदोहिका– गाय की तरह बैठना या गाय दुहने की मुद्रा में बैठना । समपादपुता— दोनों पैरों और पुतों को छुआ कर बैठना ।
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