________________
छह
का मूर्तरूप है । जैन विश्वभारती का कण-कण, पादप-पल्लव आचार्य श्री के पदरज से पावन हो रहा है
" चमन में बिखरी हुई है दास्ताँ मेरी "
उनका यह अप्रतिम योगदान सरसैयद अहमद खां, पं० मदन मोहन मालवीय और रवीन्द्रनाथ टैगोर के समान स्तुत्य व स्मरणीय रहेगा | आचार्य श्री तुलसी जी की प्रेरणा तथा शुभाशीष का यह फल है कि “अध्यात्म के परिपार्श्व में" आपके सामने है । युवाचार्य महाप्रज्ञजी उच्चकोटि के मनीषी हैं, बहुभाषाविद हैं, बहुज्ञ हैं । उनका प्रकाण्ड पांडित्य उन्हें अबू सोना, स्वामी विवेकानन्द और डॉ० राधाकृष्णन् के समान स्तर पर प्रतिष्ठित करता है । युवाचार्य महाप्रज्ञ जी ने पुस्तक का अवलोकन कर इसे प्रकाशन के लिए पसंद किया और इसका नामकरण भी उन्होंने ही किया है ।
अति व्यस्तता के बावजूद आदरणीय डॉ० विद्यानिवास मिश्र और डॉ. विजयेन्द्र स्नातक ने 'दो शब्द' और 'भूमिका' लिखकर मेरा उत्साहवर्धन किया है, एतदर्थ उनका आभारी हूं । श्री कन्हैयालाल फूलफगर (कलकत्ता) मेरे लिए सदैव आत्मीय रहे हैं । उन्होंने पुस्तक के प्रकाशन में विशेष रुचि ली । जैन विश्वभारती, लाडनूं के अध्यक्ष श्री श्रीचन्द बैंगानी तथा मंत्री श्री भूमरमल बैंगानी के सहयोग से इस पुस्तक का प्रकाशन सम्भव हो सका है । श्री कुशलराज समदड़िया ( उपमंत्री) एवं श्री ललित गर्ग का सहयोग भी स्मरणीय है । मैं इन सबके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं । आशा है - धर्म-दर्शन में रुचि रखने वाले सुधी पाठक इस पुस्तक से लाभांवित होंगे ।
गंगादशहरा ३० मई, १९९३
Jain Education International
डॉ० निजामउद्दीन (पूर्व) हिन्दी विभागाध्यक्ष, इस्लामिया कॉलेज, श्रीनगर (कश्मीर)
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org