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________________ मानव-धर्म और असाम्प्रदायिक दृष्टि उर्दू के प्रसिद्ध कवि डॉ. मुहम्मद इकबाल (१८७७-१९३७) ने अपनी कविता 'तस्वीरे-दर्द' (बांगेदरा) में साम्प्रदायिक भावना की विषाक्तता से भारतवासियों को वर्षों पूर्व सचेत किया था। उस कविता की प्रासंगिकता आज भी विद्यमान है । वह सभी भारतवासियों को सावधान करते हुए कहते हैं रुलाता है तेरा नज्जारा ए हिन्दोस्तां मुझको, कि इबरतखंज है तेरा फसाना सब फसानों में । वतन की फिक्र कर नादां ! मुसीबत आने वाली है, तेरी बरबादियों के मशवरे हैं आसमानों में । न समझोगे तो मिट जाओगे ए हिन्दोस्तां वालों, तुम्हारी दास्तां तक मी न होगी दास्तानों में । तआस्सुब छोड़ नादां ! दहर के आईना खाने में, यह तस्वीरें हैं तेरी जिनको, समझा है बुरा तूने । शजर है फिरका आराई, तआस्सुब है समर उसका, यह वो फल है कि जन्नत से निकलवाता है आदम को। (बांगेदरा) महाकवि की यह चेतावनी आज के साम्प्रदायिक दंगों में जलतेझलसते भारत के लिए ध्यातव्य है । हम संकीर्ण साम्प्रदायिकता तथा धर्माधता के प्रवाह में बहकर न केवल अपने आपको वरन समाज तथा देश को भी डूबो सकते हैं। उसकी एकता और अखण्डता का विखण्डन कर सकते हैं, उसकी प्रगति और विकास की गति में अवरोध पैदा कर सकते हैं, उसकी सामाजिक संस्कृति (कम्पोजिट कल्चर) को नेस्तनाबत कर सकते हैं. उसकी 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना पर बट्टा लगा सकते हैं, उसकी उदारशीलता तथा विशालहृदयता का गला घोट सकते हैं । हमारा वह रास्ता नहीं है जिस पर हिंसा, द्वेष, वैमनस्य का मुराडा लेकर चल रहे हैं, हमारा रास्ता विशाल तथा प्रशस्त है । वह राजमार्ग है प्रेम का, अहिंसा का, समता का, उदारशीलता का, भाईचारे का, बन्धुत्व का, स्नेह और सहानुभूति का । आज जिसे देखते हैं हाथ में ही नहीं जबान में भी छुरी दबाए है। यह मानवता वह नहीं जिसके लिए भारत की विश्व में ख्याति रही है। भारत ने तो दूसरों को भी गले से लगाया है और आज वह अपनों से ही घृणास्पद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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