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अनेकांतवाद : आधुनिक संदर्भ में
'अनेके अन्ताः धर्माः यस्मिन् स अनेकांतः' अर्थात् अनेक धर्मों के कारण प्रत्येक वस्तु अनेकांत रूप में विद्यमान है । एक हो पदार्थ में पायी जाने वाली विशेषताएं ( या धर्म ) नानारूप होती हैं; लेकिन हैं सत्य और यथार्थं । पदाथों की अनेकविध विशेषताओं के सम्यक् या तत्सम्बन्धी समन्वयात्मक प्रतिपादन का सिद्धांत अनेकांतवाद कहा जाता है | चाहे मटीरियल पदार्थ हों. चाहे नॉन- मटीरियल पदार्थ; सभी जड़-चेतन पदार्थों में अनन्त गुण, धर्म और शक्तियां मौजूद हैं । पदार्थ चाहे छोटा हो, चाहे बड़ा; है वह अनन्त शक्तिपुंज । क्या सूक्ष्म लघु परमाणु ( एटम) अनन्त शक्ति - पुंज नहीं ? परमाणु शक्ति के द्वारा अज्ञात रहस्यों का - अवनी - अंबर के गुप्त - गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन किया जा रहा है; चाहे बुधग्रह हो, चाहे भूगर्भ में छिपे अदृश्य परिवर्तन हों। एक एटम से क्षणभर में देश - के- देश विध्वस्त किए जा सकते हैं । आज परमाणु-शक्ति के द्वारा रडार, बिजलीघर आदि का सहजतः संचालन किया जा रहा है | गरज यह कि सभी पदार्थ अनन्त गुणों से आपूरित हैं और इन गुणों को सापेक्षता से परखा जा सकता है; विभिन्न दृष्टिकोणों से उन्हें हृदयंगम किया जा सकता है; जैसे बिजली से जहां आलोक प्राप्त कर तिमिरावरण को विदीर्ण किया जाता है. वहां उसी बिजली को करन्ट लगने पर प्राणों से हाथ भी धोना पड़ता है । अग्नि से नानाविध व्यंजन तैयार किए जाते हैं, शरद् ऋतु में उससे उष्णता प्राप्त होती है; लेकिन वही अग्नि घर को जलाकर राख भी कर देती है ।
अनेकांतवाद अहं दर्शन का निचोड़ है, यह एक ऐसी विचार पद्धति है जो लोकाभिमुख है; तथा सत्यावलम्बित है । इसे महावीर की सत्य-शोधनपद्धति या सत्य - प्रकाशन-शैली कहा जा सकता है। उन्होंने अनेकांतवाद के द्वारा ही व्यष्टिपरक, समष्टिपरक जीवन की भौतिक, व्यावहारिक और आध्यात्मिक - सभी प्रकार की समस्याओं का सम्यक् और अहिंसात्मक समाधान प्रस्तुत किया है । आज के इस बौद्धिक, तर्कप्रधान युग में दुराग्रह सत्यान्वेषण के मार्ग में भारी अड़चन पैदा करता है । दुराग्रह की कुहेलिका को विच्छिन्न कर सत्यालोक की प्राप्ति अनेकांतवाद द्वारा ही संभव है । दुराग्रह अहंकारगर्भित होने के कारण उपेक्षणीय एवं अग्राह्य हो जाता है, जबकि अनेकांतवाद औदार्य - गर्भित और सहिष्णुता से परिपूर्ण होने के कारण ग्राह्य है । अनेकांत में तो वस्तुओं के, समस्याओं के अनेक अंत हो सकते हैं. एक ही अंत
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