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________________ १९८ अध्यात्म के परिपार्श्व में (४) निश्छल और मैत्रीपूर्ण व्यवहार किया जाता है । (५) मादक और नशावर वस्तुओं के सेवन से छुटकारा मिलता है । हमारे युवा वर्ग को ऐसी शिक्षा पद्धति की या ऐसे जीवन - विज्ञान की अति आवश्यकता है । विद्यार्थी वर्ग जिस मानसिक तनाव में जीता है या मादक द्रव्यों के सेवन में प्रलिप्त है, उसे तनाव से, मादक द्रव्यों से छुटकारा दिलाना बहुत बड़ा दायित्व है, जो जीवन विज्ञान की शिक्षा द्वारा पूरा किया जा सकता है । यह हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है । कहा जाता है आज की शिक्षा नैतिकता से शून्य है, वह विद्यार्थी के व्यक्तित्व में नैतिकता का विकास नहीं करती । नैतिक शिक्षा या मूल्यपरक शिक्षा का अर्थ समान है। नैतिक शिक्षा या मूल्यपरक शिक्षा के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति को स्वावलम्बी, आत्मनिर्भर तथा कर्त्तव्यपरायण बनाया जाए । यह सामाजिक स्तर पर किया जा सकता है । कर्तव्यनिष्ठा होगी तो कष्ट - सहिष्णुता भी आयेगी । कष्ट सहिष्णुता आज के छात्र में अत्यल्प है, वह सुविधा प्रेमी है ! छात्र को धर्मनिरपेक्ष बनाना होगा, उसमें सम्प्रदाय के आग्रह को कम करना होगा । जब अपने सम्प्रदाय के प्रति व्यक्ति में आग्रह होता है तो वह दूसरों के मतों के प्रति सहिष्णुता नहीं बन पाता, मताग्रही बना रहता है सदा । सहिष्णुतापूर्वक दूसरे के मत को सुनेगा, दृष्टि को समझने-जानने का प्रयत्न करेगा तो उसमें मानवता की भावना पैदा होगी, मानव एकता का विचार उत्पन्न होगा । वह धैर्यवान बनेगा, उसमें मानसिक संतुलन आएगा और साथ में करुणा, सहानुभूति, सह-अस्तित्व की भाव-धाराएं भी उसकी हृदय गंगा से प्रवाहित होंगी। इसके पश्चात् उसमें आध्यात्मिक मूल्यों का भी उदय होगा । वह निर्भय होगा, अनासक्त होगा । उसमें आत्मानुशासन की भावना जागृत होगी । युवाचार्य ने अपने जीवनविज्ञान की अभिव्यंजना आधुनिक शिक्षा को सामने रखकर की है । इस विचार या दृष्टिकोण में अणुव्रत आन्दोलन काफी सहयोग दे सकता है । प्रेक्षा ध्यान के प्रयोग से भी विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास संभव होगा । आवश्यकता प्रयोग करने की है, शिक्षा को नया मोड़ देने की है । युवाचार्य शिक्षा द्वारा व्यक्ति को सही अर्थों में मानव, इन्सान बनाना चाहते हैं । शिक्षा आदमगर हो आईनासाज न हो। आज की शिक्षा अनासाज ही अधिक है, वह आदमगर नहीं बन सकी । 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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