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________________ आधुनिक मानसिकता, अणुव्रत और जीवन-मूल्य १८७ के दुःख-दर्द में कोई शरीक होता है न कोई किसी की सहायता करने के लिए इन्सानियत का नैतिक धर्म निभाता है। संयमहीनता इतनी बढ़ गई है कि आतंक-हिंसा-भ्रष्टाचार से जीवन को कोई क्षेत्र खाली नहीं। हमारे राष्ट्र नेताओं के विषय में भ्रष्टाचार की खबरें जनसाधारण तक पहुंच रही हैं । जब चाहे कोई नेता किसी की हत्या करा दे, जब चाहे उसके मिल-कारखाने में आग लगवा दे। उधर रंगभेद कम नहीं हुआ, बढ़ता जा रहा है। हम अफ्रीका में रंग-भेद की बात U. N. O. तक में उठाते हैं, लेकिन अपने गरेबान में मुंह डालकर कभी नहीं देखते । कि यहां नस्ली भेदभाव कितना है, अस्पृश्यता कितनी है । सरकार ने कानून बनाया अस्पृश्यतां के निवारण के लिए और किसी के साथ छूत-अछूत का व्यवहार करना दण्डनीय अपराध माना गया है। लेकिन अछूत समझी जाने वाली जातियों के लोगों को, उनके परिवारों को किस निर्ममता से पीड़ित किया जाता है, उन्हें मौत के घाट उतारा जाता है यह किसी से छिपा नहीं। 'जहानाबाद' का गोलीकांड इसका ताजा उदाहरण है। दूसरी ओर इसके साथ साम्प्रदायिक दंगों की काली करतूतों से हमारा माथा अभी तक कलंकित है । कहां हम २१ वीं शताब्दी में कम्प्यूटर के सहारे पहुंचने की बात करते हैं और कहां एक मनुष्य दूसरे मनुष्य की गर्दन काट रहा है, उसके पेट में छुरा घोप रहा है। इन्सानियत जैसी कोई चीज ही दिखाई नहीं देती। जब चाहे दंगा खड़ा करके रक्तपात कर दीजिए। कोई टोकने वाला नहीं। उधर आर्थिक दृष्टिकोण ने हिंसा, शोषण, अत्याचार के जैसे सब पुराने रिकार्ड तोड़ दिए। दहेज के कम मिलने पर नववधुओं को आग की लपटों में धकेल दिया जाता है। सरकार ने इसके विरुद्ध भी कानून पास किया है, पर अपराध नहीं रुक सके । आज भी समाचार-पत्रों में दहेज के दानव द्वारा लीलती जा रही हैं सुकुमार कोमालांगी युवतियां ! कहां गया भारत का वह आध्यात्मिक स्वरूप, उसकी वह नैतिक गरिमा जिसने सन्तों-सूफियों, महापुरुषों के रूप में हमें नया जीवन सन्देश दिया। आज भी महापुरुषों की कमी नहीं, लेकिन हम उनके कहे पर कान कहां धरते हैं ? उनकी वाणी को थोड़ी देर धर्मसभा में बैठकर सुनते हैं, फिर वहां से निकलकर अपनी उसकी अनैतिक, भ्रप्ट, इन्सानियत से गिरी स्वार्थ-मोह-लोभ से अंधी प्रवृत्ति के अनुसार कुकृतियों में फंस जाते हैं। स्वार्थ -मोह-लोभ का अंधमार्ग पाप की ओर जाता है, इसे जानकर भी उसी पर चलते हैं जैसे कुत्ता हड्डी चबाते हुए अपने मुंह से रिसते खून को चाटते हुए हड्डी को छोड़ना पसन्द नहीं करत । हमें मानसिकता को बदलना होगा, विवेक और आस्था का मार्ग अपनाना होगा, नैतिक आचरण को व्यवहार में लाना होगा और इसके लिए अणुव्रत आन्दोलन में सहभागी बनकर जीवनमूल्यों का संरक्षण करना होगा, उन्हें पल्लवित करना होगा। अणुव्रत से जुड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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