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इस्लाम की रोशनी में अणुव्रत आन्दोलन
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(९) मादक यानि नशीले द्रव्यों-शराब, गांजा, चरस, हेरोइन, भांग,
तम्बाकू, मांस आदि का सेवन न करना। (१०) ब्रह्मचर्य का, इन्द्रिय-संयम का निरंतर विकास करना । (११) व्यसन-मुक्त जीवन यापन करना और पर्यावरण की समस्या के
प्रति सजग रहना।
इन नियमों, व्रतों पर ध्यान दीजिए। इन पर अमल करने से मनुष्य में चारित्रिक पवित्रता आती है, उसका जीवन अनुशासन में रहता है। यहां अनुशासन का अर्थ है अपने पर शासन, स्वयं पर नियंत्रण रखना। इन नियमों में कोई धार्मिक , साम्प्रदायिक आग्रह नहीं है । ये सभी को चारित्रिक पावनता प्रदान करने वाले हैं । स्वस्थ समाज की संरचना करने वाले हैं। इसलिए इन्हें हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों के लोग अपने जीवन में क्रियान्वित कर सकते हैं और कर रहे हैं । यह सामाजिक क्रान्ति का आन्दोलन है, एक प्रकार से मानवीय आचार संहिता है, अतः मानवधर्म है । अणुव्रत आन्दोलन मानव-धर्म का आन्दोलन है। इसका आधार है 'संयमः खलु जीवनम्' । संयम का आलोक दर्शाने वाला यह अगुव्रत आन्दोलन सभी के लिए सुलभ तथा सुगम है । क्या विद्यार्थी, क्या व्यापारी, क्या वकील, क्या अध्यापक , क्या नेता, क्या डाक्टर, क्या साधु, क्या अधिकारी, क्या मजदूर, क्या किसान सभी अणुव्रत आन्दोलन के पथिक बनकर अपने तथा समाज के उत्थान में सहायक बन सकते हैं । 'संयम ही जीवन है' यह उद्घोष है अणुव्रत आन्दोलन का। सुख की स्पृहा को सीमित करना, परिग्रह को सीमित करना, सुख-सुविधा के साधनों पर अनधिकार अधिकार प्राप्त न करना, इन्द्रिय तथा मन का दास न बनना अणुव्रत का दर्शन है। अणुव्रत की आचार-संहिता नैतिक उत्थान के लिए है, यह राष्ट्रव्यापी है, मानव-धर्म है । यह सर्वधर्म समन्वय, सहिष्णुता, हिंसामूलक प्रवृत्तियों का प्रशमन, अहिंसा, प्रलोभन से बचना, आदि के द्वारा हम सामाजिक या जातीय भेदभाव को दूर कर सकते हैं, साम्प्रदायिक भावना को समाप्त कर सकते हैं और एक उदारचेता मनुष्य का निर्माण कर सकते हैं। अणुव्रत आन्दोलन नीति-मान्य नैतिक तकाजों की दस्तावेज है जिसमें मानवता का कल्याण सन्निहित है, एक व्यापक दृष्टि है, सबको जोड़ने की, एक साथ लेकर चलने की क्षमता है। यही उदारवादी दृष्टिकोण सामने देखकर सभी धर्मों-सम्प्रदायों के लोगों ने आचार्यश्री तुलसी के निर्दिष्ट मार्ग का अनुसरण किया और करोड़ों की संख्या में अणुवती बन गये, बन रहे हैं और आगे भी बनेंगे। भला कौन ऐसा कुबुद्धि होगा, विवेकशून्य होगा जो गंगा जैसे पावन अणुव्रत के अभियान में डुबकी लगाना न चाहेगा?
अणुव्रत आन्दोलन सत्संस्कारों को जन्म देने वाला, उनका अभ्युत्थान
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