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अध्यात्म के परिपार्श्व में
'मुराकबा' कहते हैं वह ध्यान का ही रूप है। ज्ञानार्जन (आत्मज्ञान) की एक पद्धति है । 'मुराकबा' आसन में बैठना है। आसनावस्था में ही भगवान महावीर को कैवल्य की-केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जहां तक प्रेक्षाध्यान और नमाज में एकाग्रचित्त होकर अल्लाह का स्मरण करने का सम्बन्ध है, दोनों में काफी साम्य है । खुदा का "जिक्र" करना, तस्बीह फेरना, मुराकबा में बैठना या रमजान के महीने में "एतकाफ" (मस्जिद के उत्तरी कोने में १० दिनों से घर-परिवार, सबसे पृथक होकर एकांतवास करते हुए अहर्निश यादें खुदा में महव रहना) में बैठना प्रेक्षाध्यान के सन्निकट हैं ।
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