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३८. मूल्य अर्हताओं का
दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं- प्रगतिशील और परंपरावादी । प्रगतिशील व्यक्ति प्राचीन परंपराओं के भंजक ही होते हैं, यह बात नहीं है । जो परंपराएं, मर्यादाएं या वर्जनाएं उनकी प्रगति में अवरोध उपस्थित नहीं करतीं, उनकी छेड़छाड़ करने में उनका विश्वास नहीं होता । पर उद्देश्यहीन अवरोध उनके लिए असह्य हो उठता है । इसलिए वे समय-समय पर कुछ नई परंपराएं स्थापित कर देते हैं । यदि ऐसा नहीं होता है तो सम्बन्धित समाज जड़ता की गिरफ्त में आ जाता है और वह अप्रासंगिक भी बन जाता है ।
परंपरावादी लोग परिवर्तन के नाम से ही चौंकते हैं। पहले से खींची हुई लकीरों को मिटाने में उनकी आस्था नहीं होती । उनमें इतना साहस भी नहीं होता कि वे कुछ नई लकीरें खींच सकें । बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती। अपने समकालीन अन्य व्यक्तियों द्वारा किए गए किसी परिवर्तन को स्वीकार करना या सहन करना भी उन्हें गवारा नहीं होता। इसका ताजा उदाहरण है - इंग्लैण्ड के चर्च में पादरी की कुर्सी पर स्त्री की उपस्थिति का व्यापक विरोध ।
ईसाई समाज में बहुत वर्षों से चर्चा छिड़ी हुई है कि स्त्री को पादरी बनने का अधिकार है या नहीं? केवल ईसाई समाज में ही क्या, पुरुष सत्तात्मक किसी भी समाज में ऐसे मुद्दे विवाद के विषय बन जाते हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि इंग्लैण्ड जैसे देश में, जहां रहने वाले लोग बौद्धिकता के क्षेत्र में गतिशील होने का दावा करते हैं, स्त्री के बारे में इतने रूढ़िवादी बन रहे हैं। यही कारण है कि इंग्लैण्ड में पादरी की कुर्सी पर कुछ मतों से ही सही, विजयी बनी महिला पादरी के विरोध में जुलूस निकाले गए और प्रदर्शन हुए।
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मूल्य अर्हताओं का : ८१
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