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३४. जरूरत है सही दृष्टिकोण की
जमाना बहुत बुरा है । भ्रष्टाचार बढ़ रहा है । धोखाधड़ी बढ़ रही है । आतंकवाद की समस्या है। अलगाववाद की मनोवृत्ति विकसित हो रही है । जातिवाद के कंटीले कैक्टस बढ़ते जा रहे हैं । सम्प्रदाय के नाम पर संघर्ष छिड़ रहे हैं । चुनाव में अनैतिकता-ही-अनैतिकता है । अपहरण, हत्या, बलात्कार और लूटमार की वारदातों ने आदमी का सुख-चैन छीन लिया है। कहीं सुरक्षा नहीं है । दिन-दहाड़े बैंक लूटे जा रहे हैं । कोई निश्चिन्त नहीं है । पता नहीं कल क्या होगा? इस प्रकार की दुश्चिन्ताएं जिन्दगी को भार बना रही हैं ।
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- मैं बहुत बार सोचता हूं कि संसार के सभी लोग उक्त निषेधात्मक भावों से भरे हों तब तो किसी का जीवन सुरक्षित नहीं रह सकता । देखा जाता है कि अवांछित वारदातों के बावजूद अरबों लोग जी रहे हैं। क्योंकि गलत काम करने वालों की संख्या बहुत कम है। यदि इन लोगों का अनुपात अधिक हो गया तो प्रलय की स्थिति पैदा हो जाएगी। अभी बहुत जल्दी किसी प्रलय की आशंका नहीं है । इसका अर्थ यह समझना चाहिए कि संसार में गलत तत्त्व कम हैं और अच्छे आदमी अधिक हैं ।
प्रश्न हो सकता है कि अच्छे आदमी अधिक हैं तो वे दिखाई क्यों नहीं देते? देखने के लिए सही दृष्टि चाहिए । दृष्टि सम्यक् नहीं होती है तो ज्ञान विपरीत हो जाता है । एक संन्यासी गांव के बाहर झोंपड़ी में रहता था । एक व्यक्ति दूसरे गांव से आया और बोला - 'बाबा ! मैं अपना गांव छोड़कर यहां रहने के लिए आया हूं। यह गांव कैसा है ? संन्यासी ने पूछा - "तुम जिस गांव को छोड़कर आए हो, वह कैसा है ? राहगीर बोला- 'वह तो बहुत अच्छा है ।' संन्यासी ने कहा- 'भाई ! यह गांव अच्छा है । तुम यहां प्रसन्नता से रहो ।'
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जरूरत है सही दृष्टिकोण की : ७३
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