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________________ ३३. विध्वंस के चौराहे पर सन् १६६३ का वर्ष पूर्णता के बिन्दु की ओर अग्रसर है। समय के भाल पर १६६४ का सूरज उदित होने वाला है। देश के प्रबुद्ध लोग विगत वर्ष की समीक्षा कर रहे हैं। राजनीतिज्ञों का अपना नजरिया है। समाजशास्त्री अपने ढंग से सोचते हैं। अर्थशास्त्रियों का अपना दृष्टिकोण है। वैज्ञानिकों की अपनी सोच है। गुरुओं की अपनी अवधारणा है और आम आदमी के चिन्तन का अपना अलग आधार है। इन सबके चिन्तन का आकलन कर निष्कर्ष प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इस प्रस्तुति में भी बहुत अन्तर रह सकता है। पर बम्बई-कलकत्ता में हुए बम-विस्फोटों की बात संभवतः कहीं भी नहीं छूट पाएगी। प्रश्न दो-चार बार हुए विस्फोटों का नहीं, उस चेतना का है जो व्यक्ति को विध्वंस के रास्ते पर धकेलती है। प्रश्न बम्बई, कलकत्ता, कश्मीर या असम का नहीं, उस मनोवृत्ति का है जो आतंक फैलाती है। प्रश्न किसी जाति, वर्ग या देश का नहीं, उस युवापीढ़ी का है, जो गुमराह हो रही है। इन या इन जैसे ही अनेक प्रश्नों का समुचित समाधान नहीं खोजा गया तो बम विस्फोट जैसे हादसों की श्रृंखला और अधिक लम्बी हो सकती है। जब कभी और जहां कहीं ऐसे हादसे होते हैं, एक बार गहरी हलचल होती है। समाचार पत्र उनको सुर्खियों में प्रकाशित करते हैं। सरकारी स्तर पर चिन्ता व्यक्त की जाती है। कुछ व्यक्तियों या संगठनों द्वारा जांच की मांग होती है और वातवरण पूरी तरह से ऊष्मा से भर जाता है। एक बार तो ऐसा प्रतीत होता है, मानो पूरी शक्ति और तत्परता के साथ अवांछित घटनाओं के कारणों की खोज और उनके निवारण के उपाय काम में लिए जाएंगे। किन्तु 'नई बात नौ दिन' वाली कहावत के अनुसार उभरे स्वर मन्द विध्वंस के चौराहे पर : ७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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