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२७. काश ! दीवारें ढहें
_हर व्यक्ति का अपना चरित्र होता है। व्यक्ति की भांति प्रत्येक समाज और राष्ट्र का भी अपना चरित्र होता है। आज की कठिनाई यह है कि व्यक्ति अपने चरित्र के प्रति जागरूक नहीं है। जागरूकता से पहला तत्त्व है आस्था। जिस विषय में व्यक्ति की आस्था ही न हो, उसके बारे में जागरूकता कहां से आएगी? एक समय था, व्यक्ति अपने चरित्र को सर्वोपरि महत्त्व देता था। किसी के चरित्र पर अंगली उठाना मृत्यु से भी अधिक कष्टप्रद माना जाता था। इसलिए व्यक्ति किसी भी मूल्य पर अपनी चारित्रिक उज्ज्वलता को धूमिल नहीं होने देता था। वर्तमान की स्थिति विपरीत है। इस युग में व्यक्ति की ऊंचाई का मानक उसका चरित्र नहीं, अर्थबल और सत्ताबल है। सत्ता पाने के लिए अनुचित तरीकों से अर्थ का संग्रह और उपयोग होता रहता है। कोई टी. एन. शेषन जैसा व्यक्ति अनुशासन, चरित्र या ईमानदारी की बात करता है तो उसके खिलाफ सामूहिक मोर्चा लेने की तैयारी की जाती है। क्या यही है भारत का राष्ट्रीय चरित्र!
अणुव्रत चरित्र निर्माण का आन्दोलन है। यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र-सबके चरित्र की चिन्ता करता है। इसका विश्वास है कि व्यक्ति के चरित्र से समाज का चरित्र बनता है और समाज का चरित्र राष्ट्रीय चरित्र के लिए आधार-शिला का काम करता है। व्यक्ति और समाज के बिना राष्ट्र की अस्मिता क्या है? इस दृष्टि से राष्ट्रीय चरित्र को अलग रूप से व्याख्यायित करने की अपेक्षा नहीं है। पर व्यक्ति की बदली हुई आत्मकेन्द्रितता उसे समूह का हिस्सा नहीं बनने दे रही है। ऐसी स्थिति में उसके आधार पर राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता। अणुव्रत का अपना दर्शन है और अपना कार्यक्रम है। इस बार की अणुव्रत यात्रा का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय
५८ : दीये से दीया जले
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