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________________ कार्यकर्ताओं का पुरुषार्थ । देश के हर कोने में अणुव्रत की गूंज । विदेशी वायुमण्डल में अणुव्रत के प्रकम्मनों की सक्रियता। फिर भी अणुव्रती लोगों का ऐसा कोई मंच, संगठन या समूह नहीं बन पाया, जो एकसूत्र में बंधा हुआ हो। अणुव्रत परिवार योजना इस रिक्तता को भरने का एक ऐसा उपक्रम है, जो 'दीये से दीया जले' कहावत के अनुसार व्यक्ति से उभरी हुई नैतिक शक्ति को पूरे परिवार में संप्रेषित कर सकेगा। अणुव्रत परिवार कोई आन्दोलन नहीं है, घोषणापत्र नहीं है और कोई शो-पीस भी नहीं है। अणुव्रत परिवार की अपनी जीवन-शैली होगी। इस परिवार का एक सदस्य जो प्रबुद्ध हो, चिंतनशील हो और विवेक संपन्न हो, संकल्पित होकर अणुव्रती बने। उसकी मनोवृत्ति में हिंसा और आक्रमण को स्थान नहीं रहेगा। वह तोड़फोड़मूलक प्रवृत्तियों में अपनी भागीदारी नहीं रखेगा। वह जाति, रंग आदि के आधार पर किसी को छोटा-बड़ा नहीं मानेगा। सांप्रदायिक उत्तेजना फैलाने में उसका विश्वास नहीं होगा। वह अपनी व्यावसायिक प्रामाणिकता पर आंच नहीं आने देगा। वह ब्रह्मचर्य की साधना के प्रयोग करेगा और संग्रह की सीमा का निर्धारण करेगा। चुनाव संबंधी अनैतिक आचरण नहीं करेगा। सामाजिक कुरूढ़ियों को प्रश्रय नहीं देगा। व्यसनमुक्त रहेगा और पर्यावरण की समस्या के प्रति जागरूक रहेगा। ____ मानवीय मूल्यों की इस न्यूनतम आचार-संहिता का पालन करने वाला व्यक्ति अणुव्रती होता है। इस आचार-संहिता में अपने परिवार को ढालने का संकल्प और पारिवारिक सदस्यों में कुछ व्रतों के प्रति आस्था जगाने वाला व्यक्ति अणुव्रत परिवार योजना का सदस्य बन सकता है। अखिल भारतीय अणुव्रत समिति ने अणुव्रत परिवार योजना के फोल्डर तैयार कर प्रसारित करने शुरू कर दिये हैं। अणुव्रत के प्रति निष्ठाशील लोगों का दायित्व है कि वे इस फोल्डर को पढ़ें, योजना को समझें और उसकी क्रियान्विति में अपना सक्रिय योगदान करें। 'अणुव्रत परिवार' अणुव्रत के आदर्शों की दुहाई नहीं देंगे, उन्हें जीयेंगे। इसलिए हजारों-हजारों लोगों के आंकड़ों को छोड़कर चयनित परिवारों में इसका प्रयोग किया जाये। यदि हम एक हजार परिवारों को अणुव्रत ५६ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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