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अनेक लोगों में विचारभेद हो सकता है, पर उसे लेकर आपस म हान वाला खींचातानी से किसका हित होगा ? ऐसा प्रतीत होता है कि विग्रह में उलझने वाले लोग वैयक्तिक दृष्टि से अधिक सोचते हैं और राष्ट्रीय परिदृश्य पर पर्दा डाल देते हैं। अन्यथा एक ही संस्था के लोग मुद्दों की संस्कृति में कैसे उलझते?
कांग्रेस पार्टी में आज भी कुछ अच्छे व्यक्ति मिल सकते हैं। पर वैचारिक आग्रह की स्थिति में उनकी सुने कौन? इसी कारण कहीं प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांगा जा रहा है और कहीं एकता के मुद्दे पर सत्ता पाने की राजनीति का विरोध हो रहा है। संसदीय शासन-प्रणाली में अलग-अलग राजनीतिक दल पक्ष और प्रतिपक्ष की भूमिका से काम करते हैं। किन्तु एक ही पार्टी में हो रहा फूट-फजीता 'घर में हानि और लोगों में उपहास' वाली कहावत चरितार्थ कर रहा है। कोई भी सच्चा कांग्रेसी इस घर की फूट को कैसे सहन कर सकता है?
पिता की मृत्यु के बाद दो भाइयों ने जमीन, जायदाद और घर की संपत्ति का बंटवारा किया। सारा काम प्रेम से हो गया। घर में एक आदमकद आईना था। उसे लेकर दोनों भाई अड़ गए। एक आईना दोनों को कैसे मिल सकता था। दोनों के आग्रह इतने प्रबल थे कि टूटन के बिन्दु तक पहुंच गए। उसी समय उनके पिता का मित्र और पुराना मुनीम वहां आ गया। समझौते का दायित्व उसे सौंपा गया। उसने आईना हाथों में लिया, उसे ऊपर उठाया और धम्म से गिरा दिया। दोनों भाई निर्वाक् हो गए। दो क्षण बाद वे बोले- 'आपने यह क्या किया ? कीमती आईना टूट गया।' पिता के मित्र ने कहा- 'मैं आईने की टूट देख सकता हूं, पर इस घर की फूट नहीं देख सकता। काश ! कांग्रेस जनों को भी ऐसा प्रतिबोध मिले।
५२ : दीये से दीया जले
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