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मोरारजी भाई का व्यक्तित्व कुछ विलक्षण अणुओं से घटित था । वे सिद्धान्तवादी, सक्रिय और सृजनचेता व्यक्ति थे । प्रवाह में बहना उन्हें कभी स्वीकार नहीं था । वे सत्यनिष्ठ और अहिंसावादी व्यक्ति थे । अहिंसा में उनकी अटूट आस्था थी । अहिंसानिष्ठ होने के कारण ही वे अभय थे। किसी भी परिस्थिति में उनकी चेतना भय के प्रकम्पनों से प्रभावित नहीं हुई । वे सुनते सबकी, पर करते अपनी अंतरात्मा की । उन्हें जो बात ठीक लगती, उसे वे करके ही रहते । इतनी वैचारिक दृढ़ता कम व्यक्तियों में मिलती है ।
उनके बारे में कहा जाता था कि सूरज पूर्व दिशा को छोड़ पश्चिम दिशा में भले ही उग जाए, मोरारजी भाई को उनके निर्णय से विचलित नहीं किया
जा सकता ।
सत्य, अहिंसा, अभय आदि जीवन मूल्यों के प्रति समर्पित मोरारजी भाई अणुव्रत-दर्शन के पृष्ठपोषक रहे, इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं है । राजनीति के शिखर - पुरुषों में अणुव्रत विचारधारा को महत्त्व देने वाले व्यक्तियों की गणना की जाए तो मोरारजी भाई का नाम प्रथम पंक्ति में स्थापित किया जा सकता हैं । पार्थिव शरीर के रूप में उनकी उपस्थिति भले ही न हो, उनकी सत्यनिष्ठा और सिद्धान्तवादिता का अहसास उन सबको होता रहेगा, जिनसे उनका आन्तरिक परिचय रहा है। वे आस्था और विश्वास के एक ऐसे प्रतीक थे, जो न होकर भी सदा रहेंगे ।
: दीये से दीया जले
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