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१०. विज्ञापन संस्कृति
शक्ति, समृद्धि और बुद्धि की अधिष्ठात्री है नारी । पौराणिक मिथकों में उजागर नारी का यह स्वरूप उसे अभय, स्वावलम्बन और सृजन की प्रतिमा के रूप में प्रतिष्ठित करता है । किन्तु यथार्थ के फलक पर भारतीय नारी भीरु, परावलम्बी और रूढ़ता की बेड़ियों में जकड़ी हुई दिखाई देती है । शक्तिहीन होने के कारण उसके साथ छेड़छाड़ और बलात्कार जैसी घटनाएं हो रही हैं। कहीं-कहीं तो उसे निर्वस्त्र करके सड़क पर घुमाने जैसे हादसे हो रहे हैं। देवता और गुरु के समान पूज्य नारी का यह अपमान भारतीय संस्कृति के मस्तक पर कलंक का धब्बा है ।
आर्थिक परावलम्बन नारी जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी है। इसी के कारण वह पुरुष का सहारा खोजती है । अपना जीवन अपने ढंग से जीने की बात वह सोच ही नहीं सकती। मैं यह नहीं कहता कि आर्थिक स्वावलम्बन के लिए उसके मन में उद्योग के शिखर पर पहुंचने की प्रतिस्पर्द्धा जागे । पर इस क्षेत्र में भी वह इतनी पिछड़ी हुई क्यों रहे कि स्वाभिमान से सिर उठाकर भी न चल सके। पुरुष की बुद्धि और शक्ति का उपयोग अर्थार्जन में होता है तो क्या घर का संचालन बिना बुद्धि और शक्ति के होना संभव है? एक नारी को पूरे दिन में जितने निर्णय लेने पड़ते हैं और काम निपटाने पड़ते हैं, क्या किसी पुरुष ' के वश की बात है ?
नारी का व्यक्तित्व पूरे परिवार का व्यक्तित्व है । उसके व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया तेज होनी चाहिए। वह स्वयं व्यक्तित्व - शून्य रहकर अपनी भावी पीढ़ी का निर्माण कैसे कर सकेगी? यह बात नहीं है कि आज की नारी अपने व्यक्तित्व के प्रति सचेत नहीं है । एक समय था, जब नारी को अपने अस्तित्व की भी पहचान नहीं थी । पर वर्तमान युग में वह कहीं अपनी अस्मिता बचाने
विज्ञापन संस्कृति : २१
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