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________________ आदमखोर भी होते हैं। ऐसे पशुओं को समाप्त करने का अभियान चलाया जाता है । पर मनुष्य तो पशु नहीं है। वह अकारण ही किसी जीव की हत्या करे, दुर्बल और बेजुबान प्राणियों का प्राणवियोजन करे, इसमें उसकी क्या महत्ता है ? मनुष्य स्वभावतः हत्यारा नहीं है । मनुष्य जाति के दो वर्ग हैंपुरुष और स्त्री । स्त्री को करुणा की मूर्ति माना जाता है। पर जब उसका नाम हत्या के साथ जुड़ता है तो आश्चर्य होता है । हत्या भी किसकी ? पशु-पक्षियों की नहीं । आक्रान्ता मनुष्य की नहीं । अपराधी मनुष्य की नहीं । अपने ही खून की हत्या । कितनी नृशंसता ! कितनी क्रूरता ! एक स्त्री इतनी नृशंस और क्रूर क्यों हो जाती है? शोध का विषय है । जिस हत्या की मैं चर्चा कर रहा हूं, वह है भ्रूणहत्या । एक मां अपनी अपाहिज संतान का पालनन-पोषण करती है, उस समय वह एक देवी प्रतीत होती है । निःस्वार्थ भाव से अपनी सुख-सुविधाओं का बलिदान करने वाली वह मां अपने अजन्मे शिशु को मारने की स्वीकृति कैसे दे देती है? इस विषय में कानून क्या कहता है, मुझे उसमें नहीं उलझना है । मानवीय अधिकार की दृष्टि से यह अनुचित है। क्या उस शिशु को जीने का अधिकार नहीं है ? निरपराध हत्या की दृष्टि से भी यह गलत है । बेचारे उस शिशु ने किसका क्या अपराध किया ? जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए गर्भपात को वैध मानना माता-पिता की गलती का प्रायश्चित्त उसकी सन्तान को देना है । कर्मशास्त्रीय दृष्टि से इसको महापाप माना गया है। आचार्य भिक्षु ने लिखा सर्पिणी इंडा गिलै आपरा, अस्त्री मारै निज भरतार, बले चाकर मारै ठाकर भणी, गुरु नै शिष्य न्हाखै मार । इम कर्म बंधै महामोहणी ॥ सर्पिणी अपने अण्डों को खाती है, स्त्री अपने पति की हत्या करती है नौकर अपने स्वामी को मारता है और शिष्य अपने गुरु का प्राणान्त करता है तो महामोहनीय कर्म का बंध होता है । उस युग में संभवतः भ्रूणहत्या नहीं होती थी । अन्यथा उक्त पद्य में इसका भी समावेश हो जाता। भ्रूणहत्या एक जघन्य अपराध है। कोई भी धर्मशास्त्र इसकी अनुमति नहीं दे सकता। यह अपराध नीतिशास्त्र सम्मत भी कैसे हो सकता है? राष्ट्रवाद या स्वार्थवाद के Jain Education International भ्रूण हत्या : एक प्रश्नचिह्न : १७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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