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________________ समाधान-जयाचार्य हमारे पूर्वज आचार्य हैं। चौबीसी उनकी कृति है । इस कारण इसके प्रति मन में आकर्षण है । पर यही एकमात्र कारण नहीं है । जयाचार्य की और भी अनेक कृतियां हैं । प्रत्येक कृति एक-एक से बढ़कर है । फिर भी चौबीसी जितनी लोकप्रियता उन्हें नहीं मिल पाई है । मेरी दृष्टि इसमें श्रद्धा-भक्ति की प्रधानता और इसके संगान से होने वाली तन्मयता इसकी सबसे बड़ी गुणवत्ता है । 1 आनन्दघनजी आध्यात्मिक पुरुष थे । उनकी चौबीसी में अध्यात्म की गहराई है, यह बात सही है। पर उतनी गहराई में हर कोई उतर नहीं सकता । उसे समझना ही टेढ़ी खीर है । मैं उसे किसी दृष्टि से कम नहीं मानता। दोनों ग्रन्थों की तुलना हम क्यों करें ? दोनों का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व है । जयाचार्य की चौबीसी में जो सहज सरलता या सादगी है वह किसी भी भावुक व्यक्ति को बहुत जल्दी प्रभावित कर सकती है । जिज्ञासा- आपने अपने जीवनकाल में ही आचार्यपद का विसर्जन कर एक आदर्श परंपरा का सूत्रपात किया है। अब आप आचार्यपद के दायित्व से मुक्त हैं, आपको कैसा महसूस हो रहा है? आपके नए कार्यक्रम क्या होंगे? समाधान - मैंने अपने जीवनकाल में आचार्यपद का विसर्जन कर किसी परंपरा का सूत्रपात नहीं किया है। इस संबंध में मैं अनेक बार कह चुका हूं कि यह मेरा अपना प्रयोग है। इसे परंपरा न बनाया जाए। आचार्य पद का विसर्जन करने के बाद मैं अपने आपको हल्का अनुभव कर रहा हूं । शासन नियन्ता होने के कारण धर्मसंघ की प्रत्येक गतिविधि पर मेरी नजर अवश्य रहती है। किन्तु मुझ पर जो दायित्व था, उससे मैं सर्वथा मुक्त हूं । मेरे नए कार्यक्रम की नाभिकीय प्रेरणा है अध्यात्म । मैं स्वयं अध्यात्म के गंभीर प्रयोग करना चाहता हूं और उसे व्यापक बनाने के प्रयास में अपनी शक्ति का नियोजन करना चाहता हूं। अध्यात्म और विज्ञान एक-दूसरे से अलग रहकर दोनों अपूर्ण हैं । मेरा प्रयत्न रहेगा कि इनमें सामंजस्य स्थापित हो । इस दृष्टि से कहीं से भी कोई कार्यक्रम चलेगा, उसमें मेरा सक्रिय योगदान रहेगा। मानव सेवा की बात इससे बढ़कर और क्या हो सकती है। अध्ययन-अध्यापन में मेरी सहज रुचि है । साहित्य सृजन भी मेरी रुचि का विषय है । इस दृष्टि से शैक्षिक एवं साहित्यिक प्रवृत्तियों में स्वयं सक्रिय I Jain Education International जिज्ञासा : समाधान : १७५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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