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________________ गीत इतने सुन्दर हैं कि इनके लिए अधिक साजबाज की अपेक्षा नहीं है। गले को सहारा देने के लिए साधारण यंत्र का उपयोग एक सीमा तक स्वीकृत हो सकता है। __जिज्ञासा-गणाधिपति ने 'चौबीसी' विशेषांक के लिए 'जैन भारती' मासिक पत्रिका को चुना। महासभा के अधिकारी एवं जैन भारती के सम्पादक सभी हर्षोत्फुल्ल हैं। हम जानना चाहेंगे कि गुरुदेव इस विशेषांक के माध्यम से 'चौबीसी' के कौन-से पक्ष को लोकजीवन में उजागर देखना चाहते हैं? समाधान-चौबीसी के किसी एक पक्ष विशेष को उजागर करना मेरा लक्ष्य नहीं है। मैं चाहता हूं कि इसको समग्रता से पढ़ा जाए और इसके प्रत्येक तत्त्व को गंभीरता से समझा जाए। 'जैन भारती' हमारे धर्मसंघ की पत्रिका है। इसने जैन पत्रिकाओं में गरिमापूर्ण स्थान बनाया है। मैं चाहता हूं कि यह और अधिक ऊंचाई तक पहुंचे, इसके लिए नए-नए आयाम खोलने आवश्यक हैं। जिज्ञासा-क्या वर्तमान समस्याओं को समाहित करने के लिए इस लघु ग्रन्थ का स्वाध्याय उपयोगी हो सकता है? ऐसे कौन-से आध्यात्मिक तत्त्व इसमें हैं, जो व्यक्ति को समष्टि के साथ जोड़ सकें और स्वार्थ को परमार्थ में बदलने के सहयोगी बन सकें। ___समाधान-चौबीसी के गीतों में ऐसे अनेक तत्त्व हैं, जो वैयक्तिक, पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं को निरस्त कर सकते हैं। उनमें सहिष्णुता, समता, एकाग्रता, समर्पण, भेदविज्ञान, अपाय-चिन्तन, इन्द्रिय विजय, संसार की अनित्यता, प्रमोद भावना आदि तत्त्व उल्लेखनीय हैं। इन गीतों में यत्र-तत्र ध्यान तत्त्व की चर्चा बहुत है। यह एक ऐसा तत्त्व है जो तनाव, असन्तुलन आदि व्यापक स्तर की समस्याओं का समाधान है। जिज्ञासा-यह कृति आपके पूर्वज आचार्य की है। क्या इसीलिए आप इसको इतना महत्त्व देते हैं या गुणवत्ता आदि अन्य किसी कारण से? सुना जाता है कि आनन्दघनजी की 'चौबीसी' अध्यात्मरस से ओतप्रोत है। दोनों के संबंध में आपका क्या विचार है? १७४ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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