________________
तात्त्विक विवेचन आदि बातों ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया। मैं जब-जब इसका संगान करता हूं, आत्मविभोर हो जाता हूं। व्याख्यान में चौबीसी के गीत गाता हूं तो श्रोता तन्मय हो जाते हैं। मैंने ऐसा अनुभव किया कि चौबीसी के गंभीर अध्ययन और स्वाध्याय से अनेक लोग बहुश्रुत बन सकते हैं। इसी उद्देश्य से चौबीसी को सार्वजनीन व्यापकता देने का चिन्तन किया।'सार्द्ध शताब्दी' एक निमित्त बनी। इससे ध्यान केन्द्रित हो गया।
जिज्ञासा-तीर्थंकरों की स्तवना का उद्देश्य व्यक्ति को वीतरागता तक पहुंचाना है। पर इस संदर्भ में स्तुतिपरक साहित्य को देखकर लगता है कि उनके अनुयायियों ने वीतरागता से अधिक दैविक वैभव, चमत्कार एवं भौतिक बाह्याडम्बरों को अधिक मूल्यवत्ता दी है। जयाचार्य कृत 'चौबीसी' भी इससे अछूती नहीं रही है। इस संदर्भ में आपका क्या चिन्तन है? ..
समाधान-वीतरागता जैन-धर्म का आदर्श है। वीतराग-वन्दना या स्तवना का मूल उद्देश्य वीतरागता की दिशा में अग्रसर होना ही है। भावक्रिया के साथ वीतराग शब्द के अर्थ का अनुचिन्तन भी वीतराग बनने का एक उपाय है। वीतराग के स्तुतिपरक साहित्य में दिव्य वैभव, चमत्कार आदि की बात के पीछे दो दृष्टियां हो सकती हैं- वस्तुस्थिति का प्रकाशन करना और वीतराग के प्रति आम आदमी में आकर्षण जगाना। वीतराग दिव्य और योगज अतिशयों से सम्पन्न होते हैं। सब लोग उन अतिशयों को नहीं जानते। उनकी बोधयात्रा विशद बनाने के लिए वीतराग-चरित्र की विलक्षण बातें बताई जाती हैं।
__ मनुष्य भोजन क्यों करता है? भूख मिटाने के लिए। खाद्य पदार्थ कैसा ही हो, भूख मिट जाएगी। फिर भी उसे चेष्टापूर्वक सरस बनाया जाता है। सरस और सुरुचिपूर्ण भोजन के प्रति सहज आकर्षण रहता है। इसी प्रकार वीतराग की स्तुति किसी रूप में की जाए, वह कर्म निर्जरा का हेत बनेगी। उसके प्रति आम आदमी को आकृष्ट करने के लिए दिव्यता के प्रसंग जोडे जाते हैं तो रचना में सरसता ही आएगी। ___कोरा अध्यात्म रूखा होता है। उसे सरस बनाने के लिए भौतिक ऋद्धियों की चर्चा चिन्तनपूर्वक की गई है, ऐसा प्रतीत होता है। सत्यं शिवं सुन्दरं-ये तीन तत्त्व हैं। सत्य की खोज मनुष्य का लक्ष्य है। शिव कल्याणकारी होता
१७० : दीये से दीया जले
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org