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मनुष्य कम-से-कम इतना पतित तो न हो कि वह अकारण ही ऐसी विनाशलीला रच दे, जिसके संवाद ही संसार को हिलाकर रख दें। ऐसे कार्यों में संलग्न व्यक्ति इतना-सा तो सोच लें कि यह हादसा उनके साथ होता तो । मेरा विश्वास है कि ऐसा संवेदन ही मनुष्य की दिशा को कोई वांछित मोड़ दे सकेगा।
११४ : दीये से दीया जले
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