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________________ ४३. पुरुषार्थ निर्माता है भाग्य का पुरुषार्थ और भाग्य-ये दो विरोधी ध्रुव हैं। पुरुषार्थ कर्म की प्रेरणा है। भाग्य अदृष्ट की आराधना है। परिणाम आए या नहीं, पुरुषार्थी कर्म में संलग्न रहता है। भाग्यवादी कुछ भी करता है, उसमें अपने कर्तृत्व का अनुभव नहीं करता। अपने सफल पुरुषार्थ को भी वह भाग्य का अवदान मानता है। कुछ लोग देववाद में विश्वास करते हैं। अमुक देव की पूजा करने से व्यक्ति की सब कामनाएं सफल हो जाती हैं, इस अवधारणा के आधार पर मन्दिरों में परिक्रमा करने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। भाग्यवाद और देववाद के साथ एक नया वाद और पनप रहा है-ज्योतिषवाद । भाग्य और देव की तरह ज्योतिष के प्रति भी लोगों में अन्धश्रद्धा सघन होती जा रही है। __ज्योतिष एक विद्या है, यह सत्य है। ज्योतिष के आधार पर जन्मकुण्डली बनाई जाती है। जन्मकुण्डली देखकर वर्ष भर के लाभ-अलाभ बताए जाते हैं। बताई गई सब बातें यथार्थ ही हों, जरूरी नहीं है। संभवतः जातक के जन्म का समय सही नहीं हो, ज्योतिषी का ज्ञान सही नहीं हो, कुण्डली देखते समय चित्त एकाग्र न हो अथवा और कोई कारण हो, ज्योतिषविद्या की सचाई के आगे प्रश्नचिह लगते जा रहे हैं। बावजूद इसके ज्योतिषियों के प्रति अन्धश्रद्धा बढ़ी है। कुछ लोग तो उन्हें भगवान् मानकर उनके द्वारा कही गई प्रत्येक बात पर विश्वास कर लेते हैं और मन्दिरों की तरह उनके घर या कार्यालय की परिक्रमा करते रहते हैं। कुछ ज्योतिषी पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन देते हैं। उनमें अपने टेलीफोन नम्बर बता देते हैं। उस नम्बर पर फोन करके भविष्य जानने का आकर्षण उत्पन्न करते हैं। सबसे अधिक विकसित मस्तिष्क वाले मनुष्य का चिन्तन कितना बौना होता है कि वह उनकी बातों में आ जाता है और पानी की पुरुषार्थ निर्माता है भाग्य का : ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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