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एक व्यक्ति ने संकल्प स्वीकार किया-वह निरपराध प्राणी की हत्या नहीं करेगा, आत्महत्या भी नहीं करेगा। एक बार वह परिस्थितियों से घिर गया। जीना मुश्किल हो गया। जीवन से ऊबकर उसने मृत्यु का वरण करने की बात सोची। अपनी सोच को क्रियान्वित करने के लिए घर छोड़कर समुद्रतट पर जा पहुंचा। समुद्र में छलांग भरने की पूरी तैयारी। सहसा मन के किसी कोने में सोया संकल्प जाग उठा । आत्महत्या नहीं करूंगा-ये शब्द उसके भीतर गूंजने लगे। उसने इरादा बदला । सकुशल घर पहुंच गया। उसी व्यक्ति ने बताया-'व्रत स्वीकार करते समय मैंने सोचा था कि ऐसे व्रत की क्या अपेक्षा है ? किन्तु मैं अब अनुभव करता हूं कि इस व्रत ने मुझे बचा लिया। यदि मुझे व्रत याद नहीं आता तो मेरे बहके हुए कदमों को मोड़ने वाला दूसरा कोई वहां नहीं था।' ।
व्रत भारतीय संस्कृति को जीवित रखने वाली प्राणधारा है। इसी बात को ध्यान में रखकर व्रत का आन्दोलन शुरू किया गया। व्रत के दो रूप हैं-महाव्रत और अणुव्रत। महाव्रत का क्षेत्र सीमित है। हर कोई व्यक्ति महाव्रतों की साधना नहीं कर सकता। अणुव्रत राजपथ है। इस पथ पर हर एक चल सकता है। कोई भी व्यक्ति अणुव्रती बन सकता है, इस चिन्तन से इसको साधारण बात मानना भी भूल है। व्रत कितना ही छोटा क्यों न हो, उससे व्यक्ति की कसौटी हो जाती है। संकल्पशक्ति और आत्मविश्वास के अभाव में छोटे-से-छोटे व्रत का पालन भी कठिन हो जाता है। संकल्पशक्ति बढ़ाने और आत्मविश्वास जुटाने से असंभव-सा प्रतीत होने वाला काम भी संभव बन जाता है।
__ अणुव्रत के दो फलित हैं-विकृति का निस्सरण और संस्कृति की सुरक्षा। मानव-मन को विकृत बनाने वाली विकृतियों से छुटकारा पाने के लिए अणुव्रत की शरण स्वीकार की जाए। अणुव्रत, एक ऐसा सुरक्षाकवच है, जो व्यक्ति या समाज को ही नहीं, उजली सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रख सकता है। इस सचाई से मनुष्य परिचित हो जाए तो मनुष्य के मन और सांस्कृतिक निर्मलताओं में हो रही विकृतियों की घुसपैठ को रोका जा सकता है।
८४ : दीये से दीया जले
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