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भगवान सुपार्श्वनाथ
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प्रतिष्ठसेन ने जब यह चर्चा सुनी, तो अपना अनुभव व्यक्त करते हुए उन्हेंने रानी से कहा कि इन स्वप्नों को देखने वाली स्त्री किसी चक्रवर्ती अथवा तीर्थंकर की जननी होती है। तुम परम भाग्यशालिनी हो। महाराज और रानी की प्रसन्नता का पारावार न रहा।
उचित समय पर रानी ने पुत्र को जन्म दिया। सर्वत्र उमंग और हर्ष व्याप्त हो गया। वह महान् दिन ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी का था। गर्भ-काल में माता के पार्श्वशोभन रहने के कारण बालक का नाम सुपार्श्वनाथ रखा गया। कुमार सुपार्श्वनाथ पूर्व संस्कारों के रूप में पुण्य-राशि के साथ जन्मे थे। वे अत्यन्त तेजस्वी, विवेकशील और सुहृदय थे।
गृहस्थ-जीवन
बाह्य आचरण में सांसारिक मर्यादाओं का भलीभाँति पालन करते हुए भी अपने अन्त:करण में वे अनासक्ति और विरक्ति को ही पोषित करते चले। योग्यवय-प्राप्ति पर श्रेष्ठ सुन्दरियों के साथ पिता महाराजा प्रतिष्ठ ने कुमार सुपार्श्वनाथ का विवाह कराया। आसक्ति और काम के उत्तेजक परिवेश में रहकर भी कुमार सर्वथा अप्रभावित रहे। वे इन सब को अहितकर मानते थे और सामान्य से भिन्न वे सर्वथा तटस्थता का व्यवहार रखते थे, न वैभव में उनकी रुचि थी, न रूप में प्रति आकर्षण का भाव। महाराजा प्रतिष्ठ ने कुमार सुपार्श्वनाथ को सिंहासनारूढ़ भी कर दिया था, किन्तु अधिकार-सम्पन्नता एवं प्रभुत्व उनमें रंचमात्र भी मद उत्पन्न नहीं कर सका। इस अवस्था को भी वे मात्र दायित्व पूर्ति का बिन्दु मान कर चले, भोग-विलास का आधार नहीं।
दीक्षा-ग्रहण
सुपार्श्वनाथ के मन में पल्लवित होने वाला यह विरक्ति-भाव परिपक्व होकर व्यक्त भी हुआ और उन्होंने कठोर संयम स्वीकार कर लिया। तब तक उनका यह अनुभव पक्का हो गया था कि अब भोगावली का प्रभाव क्षीण हो गया है। लोकान्तिक देवों के आग्रह पर वर्षीदान सम्पन्न कर सुपार्श्वनाथ ने अन्य एक हजार राजाओं के साथ ज्योष्ठ शुक्ला त्रयोदशी को दीक्षा ग्रहण की थी। षष्ठ-भक्त की तपस्या से उन्होंने मुनि जीवन प्रारम्भ किया। पाटलि खण्ड में वहाँ के प्रधान नायक महाराज महेन्द्र के यहाँ मुनि सुपार्श्वनाथ ने प्रथम पारणा किया।
केवलज्ञान
दीक्षा-प्राप्ति के तुरन्त पश्चात् ही प्रभु सुपार्श्वनाथ ने मौनव्रत धारण कर लिया था। अत्यन्त कठोर तप-साधना पूर्ण करते हुए वे ग्रामानुग्राम विचरण करते रहे। एकाकीपन उनके विहार की विशेषता थी। उनकी साधना इतनी प्रखर भी कि मात्र नौ माह की अवधि में ही वे आत्मा की उत्तरोत्तर उन्नति करते हुए सिद्धि की सीमा पर पहुँच गए थे। तभी एक
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