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भगवान अभिनन्दननाथ
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दीक्षोपरान्त मुनि महाबल ने सहिष्णुतापूर्वक अत्यंत कठोर साधना की। वह ग्रामानुग्राम विचरण करता, हिंसक पशुओं से भरे भयंकर वनों में विहार करता और साधनालीन रहा करता। जिन-जिन स्थानों पर उसे अधिक पीड़ा होती, उपद्रवी और अनुदार जनता उसे कष्ट पहुँचाती-उन स्थानों में ही वह प्राय: अधिक रहता और स्वयं भी अपने को भौतिक पदार्थों के अभाव की स्थिति में रखता था। विषय वातावरण में रहकर उसने प्रतिकूल उपसर्गों में स्थिरचित रहने की साधना का वह 'क्षमा' के उत्कृष्ट तत्त्व को दृढ़तापूर्वक अपनाता चला गया। सुदीर्घ एवं कठोर तप तथा उच्च कोटि की साधना द्वारा मुनि महाबल ने तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जित किया। महाबल की आत्मा ने उस पंचभूत शरीर को त्याग कर देवयोनि प्राप्त की। वह विजय विमान में अनुत्तर देव बना।
जन्म-वंश
अयोध्या नगरी में राजा संवर का शासन काल था। उनकी धर्म-पत्नी रानी सिद्धार्थ अपने अचल शील और अनुपम रूप के लिए अपने युग में अतिविख्यात थी। इसी राज-परिवार में मुनि महाबल के जीवन ने देवलोक से च्युत होकर जन्म धारण किया। तीर्थंकरों की माताओं के समान ही रानी ने 14 दिव्य स्वप्नों का दर्शन किया। इस आधार पर यह अनुमान लगाया जाने लगा कि किसी पराक्रमशील महापुरुष का अवतरण होने वाला है व कालान्तर में यह अनुमान सत्य सिद्ध हुआ। यथा समय रानी ने पुत्र को जन्म दिया। इस अद्वितीय तेजवान सन्तान के उत्पन्न होने के अनेक सुप्रभाव दृष्टिगत हुए। सर्वत्र हर्ष का ज्वार आ गया। अपनी प्रजा का अतिशय हर्ष (अभिनन्दन) देखकर राजा को अपने नवजात पुत्र के नामकरण का आधार मिल गया और कुमार को 'अभिनन्दन' नाम से पुकारा जाने लगा। बालक अभिनन्दन कुमार न केवल मृदुलगात्र अपितु आकर्षक, मनमोहक एवं अत्यंत रूपवान भी था। यहाँ तक कि देवी-देवताओं के मन में भी इनके साथ क्रीड़ारत रहने की अभिलाषा जागृत होती थी। उन्हें स्वयं भी बालरूप धारण कर अपनी कामना-पूर्ति करने को विवश होना पड़ता था।
गृहस्थ-जीवन
क्रमश: अभिनन्दन कुमार शारीरिक एवं मानसिक रूप से विकसित होते रहे और यौवन के द्वार पर आ खड़े हुए। स्वभाव से वे चिंतनशील और गंभीर थे। सांसारिक सुखों व आकर्षणों में उनको तनिक भी रुचि नहीं थी। अपने अन्तर्जगत् में शून्य और रिक्तता का अनुभव करते थे। अनेक सुन्दरियों से उनका विवाह भी सम्पन्न हो गया, किन्तु रमणियों का आकर्षक सौंदर्य और राज्य वैभव भी उनको भोगोन्मुख नहीं बना सका। राजा संवर ने आत्म-कल्याण हेतु दीक्षा ग्रहण कर जब अभिनन्दन कुमार का राज्याभिषेक कर दिया, तो यह उच्च अधिकार पाकर भी वे अप्रभावित रहे। उनकी तटस्थता में कोई अन्तर नहीं आया।
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