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________________ 3 भगवान संभवनाथ ( चिन्ह - अश्व ) भगवान अजितनाथ के परिनिर्वाण के पश्चात् पुनः दीर्घ अन्तराल व्यतीत होने पर तृतीय तीर्थंकर भगवान संभवनाथ का अवतरण हुआ। आपके इस जन्म के महान् कार्य, गरिमापूर्ण व्यक्तित्व एवं तीर्थंकरत्व की उपलब्धि पूर्वजन्म के शुभसंस्कारों का सुपरिणाम था। पूर्व जन्म प्राचीनकाल में क्षेमपुरी राज्य में एक न्यायी एवं प्रजापालक नरेश विपुलवाहन का शासन था। वह अपने सुकर्मों और कर्त्तव्यपरायणता के आधार पर असाधारणतः लोकप्रिय हो गया था। मानव - हित की भावना और सेवा की प्रवृत्ति ही मनुष्य को महान् बनाती है— इस तथ्य को महाराजा विपुलवाहन का सदाचार भलीभाँति प्रमाणित कर देता है। महाराजा विपुलवाहन के शासनकाल में क्षेमपुरी एक समय घोर विपत्तियों में घिर गयी थी। वर्षा के अभाव में सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गयी। अकाल की भीषण विभीषिका ताण्डव नृत्य करने लगी। हाहाकार की गूँज से प्रतिपल व्योम आपूरित रहता और ये नये मेघ राजा की हृदयधरा पर वेदना की ही वर्षा करते थे। अन्यथा जलदाता मेघ तो चारों ओर से घिरकर आते भी तो सांसारिक वैभव की असारता की ही पुष्टि करते हुए बिना बरसे ही बिखर जाते और प्रजा की निराशा पहले की अपेक्षा कई गुनी अधिक बढ़ जाती । जलाशयों के पेंदों में दरारें पड़ गयीं। नदी, नाले, कूप, सरोवर कहीं भी जल की बूँद भी शेष नहीं रही । भूख-प्यास से तड़प-तड़प कर प्राणी देह त्यागने लगे । Jain Education International इस दुर्भिक्ष ने जैसे मानवमात्र को एक स्तर पर ही ला खड़ा कर दिया था। ऊँच-नीच, छोटे-बड़े के समस्त भेद समाप्त हो गये थे। सभी क्षुधा की शान्ति के लिए चिन्तित थे। अन्नाभाव के कारण सभी कंद-मूल, वन्यफल, वृक्षों के पल्लवों और छालों तक से आहार जुटाने लगे। यह भण्डार भी सीमित था । अभागी प्रजा की सहायता यह वानस्पतिक भण्डार भी कब तक करता? जन-जीवन घोर कष्टों को सहन करते-करते क्लान्त हो चुका था । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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