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________________ भगवान अजितनाथ परिनिर्वाण ___72 लारव पूर्व की आयु पूर्ण होने पर भगवान अजितनाथ को अनुभव होने लगा कि उनका अन्तिम समय अब समीप ही है और उन्होंने सम्मेत शिखर की ओर प्रयाण किया। वहाँ प्रभु ध्यानलीन होकर स्थिर हो गये। इस प्रकार उनका एक माह का अनशन व्रत चला और चैत्र शुक्ला पंचमी को आपको निर्वाण की प्राप्ति हुई-वे बुद्ध और मुक्त हो गए। प्रभु के परिनिर्वाण के पश्चात् भी पर्याप्त दीर्घकाल तक आपके द्वारा स्थापित धर्मशासन चलता रहा और इस माध्यम से असंख्य आत्माओं का कल्याण होता रहा। धर्म-परिवार भगवान अजितनाथ का धर्म-परिवार बड़ा विशाल था। उसका परिचय इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता हैगणधर 90 केवली 22,000 मन:पर्यवज्ञानी 1,450 अवधिज्ञानी 9,400 चौदह पूर्वधारी 3,500 वैक्रियलब्धिधारी 20,400 वादी 12,400 साधु 1,00,000 साध्वी 3,30,000 श्रावक 2,98,000 श्राविका 5,45,000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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