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चौबीस तीर्थंकर
आत्म-कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। अपनी आयु के अन्तिम समय में भगवान अष्टापद पर्वत पर पधार गये। वहाँ आप चतुर्थ भक्त के अनशन तप में ध्यानलीन होकर शुक्लध्यान के चतुर्थ चरण में प्रविष्ट हुए। भगवान ने वेदनीय, आयु नाम और गोत्र के चार अघाति कर्म नष्ट कर दिये। माघ कृष्णा त्रयोदशी को अभिजित नक्षत्र की घड़ी में भगवान ने समस्त कर्मों का क्षय कर निर्वाण पद प्राप्त कर लिया। वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गये।
धर्म परिवार
भगवान के धर्मसंघ में लगभग 84 हजार श्रमण थे और कोई 3 लाख श्रमणियाँ। भगवान के 84 गणधर थे। प्रत्येक के साथ श्रमणों का समूह था जिसे 'गण' कहा जाता था। सम्पूर्ण श्रमण संघ विभिन्न गुणों के आधार पर 7 श्रेणियों में विभाजित था
(1) केवलज्ञानी, (2) मन:पर्यवज्ञानी, (3) अवधिज्ञानी, (4) वैक्रियलब्धिधारी, (5) चौदह पूर्वधारी, (6) वादी और (7) सामान्य साधु।
भगवान ऋषभदेव के धर्म-परिवार की सुविशालता के सन्दर्भ में निम्न तालिका उल्लेखनीय है
84
गणधर केवली मन:पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी वैक्रियलब्धिधारी चौदह पूर्वधारी वादी साधु साध्वी श्रावक श्राविका
20,000 12,650
9,000 20,600
4,750 12,650 84,000 3,00,000 3,05,000 5,54,000
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