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आर्थर ए० मैकडॉनल के अभिमतानुसार प्राचीनतम वर्ग वृहदारण्यक, छान्दोग्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय और कौषीतकी उपनिषद् का रचनाकाल ईसा पूर्व 600 है।'
एच० सी० राय चौधरी का मत है कि विदेह के महाराज जनक याज्ञवल्क्य के समकालीन थे। याज्ञवल्क्य वृहदारण्यक और छान्दोग्य उपनिषद् के मुख्य पात्र पाँच हैं। उनका काल-मान ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी है। प्रस्तुत ग्रंथ पृष्ठ 97 में लिखा है-“जैन तीर्थंकर पार्श्व का जन्म ईसा पूर्व 877 और निर्वाणकाल ईसा पूर्व 777 है।" इससे भी यही सिद्ध है कि प्राचीनतम उपनिषद् पार्श्व के पश्चात् हैं।
डाक्टर राधाकृष्णन् की धारणा के अनुसार प्राचीनतम उपनिषदों का काल-मान ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी से ईसा की तीसरी शताब्दी तक है।'
स्पष्ट है कि उपनिषद् साहित्य भगवान पार्श्व के पश्चात् निर्मित हुआ है। भगवान पार्श्व ने यज्ञ आदि का अत्यधिक विरोध किया था। आध्यात्मिक साधना पर बल दिया था, जिसका प्रभाव वैदिक ऋषियों पर भी पड़ा और उन्होंने उपनिषदों में यज्ञ का विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट कहा-“यज्ञ विनाशी और दुर्बल साधन है। जो मूढ़ हैं, वे इनको श्रेय मानते हैं, वे बार-बार जरा और मृत्यु को प्राप्त होते रहते हैं।"
मुण्डकोपनिषद् में विद्या के दो प्रकार बताये हैं-परा और अपरा। परा विद्या वह है जिससे ब्रह्म की प्राप्ति होती है और इससे भिन्न अपराविद्या है। ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष यह अपरा है।'
महाभारत में महर्षि बृहस्पति ने प्रजापति मनु से कहा है- “मैंने ऋक्, साम, यजुर्वेद, अथर्ववेद, नक्षत्रगति, निरुक्त, व्याकरण, कल्प और शिक्षा का भी अध्ययन किया है तो भी मैं आकाश आदि पाँच महाभूतों के उपादान कारण को न जान सका।'
प्रजापति मनु ने कहा-“मुझे इष्ट की प्राप्ति हो और अनिष्ट का निवारण हो इसलिए कर्मों का अनुष्ठान प्रारम्भ किया गया है। इष्ट और अनिष्ट दोनों ही मुझे प्राप्त न हों एतदर्थ ज्ञानयोग का उपदेश दिया गया है। वेद में जो कर्मों के प्रयोग बताये गये हैं वे प्राय: सकाम भाव से युक्त हैं। जो इन कामनाओं से मुक्त होता है वही परमात्मा को पा सकता
3 History of the Sanskrit Literature, p. 226. 4 पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ एन्शियण्ट इण्डिया, पृ० 52। 5 दी प्रिंसपल उपनिषदाज, पृ० 22 | 6 प्लवा ह्येते अदृढ़ा यज्ञरूपा अष्टादशोक्तमवरं येषु कर्म। एतच्छेयो येऽभिनन्दन्ति मूढा जरामृत्युं ते पुनरेवापि यन्ति।।
-मुण्डकोपनिषद् 1273 7 माण्डूक्य० 1145 8 महाभारत शान्ति पर्व 20118
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