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________________ इसीलिए इतिहासकार उन्हें ऐतिहासिक पुरुष मानते हैं। जैन साहित्य से ही नहीं, अपितु बौद्ध साहित्य से भी उनकी ऐतिहासिकता सिद्ध होती है। इसी ऐतिहासिकता के साथ यह भी सिद्ध हो जाता है कि भगवान महावीर का परिनिर्वाण ईसा पू० 527-528 माना गया है। निर्वाण से 30 वर्ष पूर्व ईसा पूर्व 557 महावीर ने सर्वज्ञत्व प्राप्त कर तीर्थ का प्रवर्तन किया और महावीर एवं पार्श्वनाथ के तीर्थ में 250 वर्ष का अन्तर है। इसका अर्थ है ई० पू० 807 में भगवान पार्श्वनाथ ने इस धरा पर धर्मतीर्थ का प्रवर्तन किया। श्रमण संस्कृति ही नहीं, अपितु वैदिक संस्कृति भी भगवान पार्श्वनाथ से प्रभावित हुई। वैदिक संस्कृति में पहले भौतिकता का स्वर प्रखर था। भगवान पार्श्व ने उस भौतिकवादी स्वर को आध्यात्मिकता का नया आलाप दिया। वैदिक संस्कृति में श्रमण संस्कृति के स्वर वैदिक संस्कृति का मूल वेद है। वेदों में आध्यात्मिक चर्चाएँ नहीं हैं। उसमें अनेक देवों की भव्यस्तुतियाँ और प्रार्थनाएँ की गई हैं। द्युतिमान होना देवत्व का मुख्य लक्षण है। प्रकृति के जो रमणीय दृश्य और विस्मयजनक व चमत्कारपूर्ण जो घटनाएँ थीं उनको सामान्य रूप से देवकृत कहा गया है। आधिभौतिक, आधिदेविक और आध्यात्मिक-देव के ये तीन प्रकार माने गये हैं। इन तीनों दृष्टियों से देवत्व का प्रतिपादन वैदिक ग्रन्थों में प्राप्त होता है। स्थान विशेष से तीन देवता प्रमुख हैं। पृथ्वीस्थानदेव-इसमें अग्नि को मुख्य माना गया है। अन्तरिक्षस्थान देव-इसमें इन्द्र और वायु को मुख्य स्थान दिया गया है। धुस्थानदेव-जिनमें सूर्य और सविता मुख्य हैं। इन तीनों देवों की स्तुति ही विभिन्न रूपों में विभिन्न स्थानों पर की गई है। इन देवों के अतिरिक्त अन्य देवों की भी स्तुतियाँ की गई हैं। ऋग्वेद की तरह सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद में भी यही है। उसके पश्चात् ब्राह्मण ग्रन्थ आते हैं। उनमें भी यज्ञ के विधि-विधान का ही विस्तार से वर्णन है-यज्ञों के सम्बन्ध में कुछ विरोध भी प्रतीत होता है। उसका परिहार भी ब्राह्मण ग्रन्थों में किया गया है। उसके पश्चात् संहिता साहित्य आता है। संहिता और ब्राह्मण ग्रन्थों में मुख्य भेद यही है कि संहिता स्तुतिप्रधान है और ब्राह्मण विधि प्रधान है। उसके पश्चात् उपनिषद् साहित्य आता है। उसमें यज्ञों का विरोध है। अध्यात्म-विद्या की चर्चा है-हम कौन हैं, कहाँ से आये हैं, कहाँ जायेंगे-आदि प्रश्नों पर भी विचार किया गया है। अध्यात्मविद्या श्रमण संस्कृति की देन है। __ आचार्य शंकर ने दस उपनिषदों पर भाष्य लिखा है। उनके नाम इस प्रकार हैं-ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य और वृहदारण्यक। डॉक्टर बेलकर और रानाडे के अनुसार प्राचीन उपनिषदों में मुख्य ये हैं-छान्दोग्य, वृहदारण्यक, कठ, तैत्तिरीय, मुण्डक, कौषीतकी, केन और प्रश्न।' 2 हिस्ट्री आफ इण्डियन फिलासफी, भाग 2, पृ० 87-90 । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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