________________
41
स्वीकार करते हैं। जिनके सम्बन्ध में विस्तार से हम अन्यत्र निरूपण कर चुके हैं। इससे भी यह सिद्ध होता है कि महावीर के पूर्व चार याम को मानने वाला निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय था।5 भगवती (शतक 15) के वर्णन से यह भी ज्ञात होता है कि शान, कलद, कर्णिकार आदि छह दिशाचर, जो अष्टांग निमित्त के ज्ञाता थे, उन्होंने गोशालक का शिष्यत्व स्वीकार किया। चूर्णिकार के मतानुसार वे दिशाचर पार्श्वनाथ संतानीय थे।
(4) बौद्ध साहित्य में महावीर और उनके शिष्यों को चातुर्यामयुक्त लिखा है। दीघनिकाय में एक प्रसंग है। अजातशत्रु ने तथागत बुद्ध के सामने श्रमण भगवान महावीर की भेंट का वर्णन करते हुए कहा है_ 'भन्ते ! मैं निगष्ठनात्तपुत्र के पास भी गया और उनसे भी सादृष्टिक श्रामण्यफल के बारे में पूछा। उन्होंने मुझे चातुर्याम संवरवाद बतलाया। उन्होंने कहा-निगण्ठ चार संवरों से संवृत रहता है-(1) वह जल के व्यवहार का वर्जन करता है, जिससे जल के जीव न मरे (2) वह सभी पापों का वर्जन करता है (3) सभी पापों के वर्जन से धुत पाप होता है और (4) सभी पापों के वर्जन में लाभ रहता है। इसलिए वह निर्ग्रन्थ गतात्मा, यत्तात्मा और स्थितात्मा कहलाता है।
संयुक्तनिकाय में सभी तरह निक नामक एक व्यक्ति ज्ञातपुत्र महावीर को चातुर्याम युक्त कहता है। जैन साहित्य से यह पूर्ण सिद्ध है कि भगवान महावीर की परम्परा पञ्चमहाव्रतात्मक रही है। तथापि बौद्ध साहित्य में चार याम युक्त कहा गया है। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि बौद्ध भिक्षु पार्श्वनाथ की परम्परा से परिचित व सम्बद्ध रहे हैं और इसी कारण महावीर के धर्म को भी उन्होंने उसी रूप में देखा है। यह पूर्ण सत्य है कि महावीर के पूर्व निर्ग्रन्थ सम्प्रदायों में चार यामों का ही महात्म्य था और इसी नाम से वह अन्य सम्प्रदाय में विश्रुत रहा होगा। सम्भव है बुद्ध और उनकी परम्परा के विज्ञों को श्रमण भगवान महावीर ने निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय में जो आंतरिक परिवर्तन किया, उसका पता न चला हो।
85 (क) व्याख्याप्रज्ञप्ति 1976
(ख) उत्तराध्ययन 23
(ग) सूत्रकृताङ्ग. 2, नालंदीयाध्ययन 86 आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, प्रथम खण्ड पृ. 20 87 दीघनिकाय सामञ्जफल 1-2 88 उत्तराध्ययन 23/23 89 बौद्ध साहित्य में जो चार याम बताये गये हैं वे यथार्थ नहीं हैं। तथागत की व्रत
कल्पना जैन- परम्परा में नहीं मिलती है। यह कहा जा सकता है कि शीत जल आदि का निषेद जैन- परम्परा के विरुद्ध नहीं है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org