SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 40 (1) जैनागमों में और बौद्ध त्रिपिटकों” में अनेक स्थलों पर मंखलीपुत्र गोशालक का वर्णन है। वह एक स्वतन्त्र सम्प्रदाय का संस्थापक था जिसका नाम 'आजीवक' था। बुद्धघोष ने दीघनिकाय पर एक महत्त्वपूर्ण टीका लिखी है। उसमें वर्णन है कि गोशालक के मन्तव्यानुसार मानव समाज छह अभिजातियों में विभक्त है। उनमें से तृतीय लोहाभिजाति है। यह निर्ग्रन्थों की एक जाति है जो एक शाटिक होते थे।" एक शाटिक निर्ग्रन्थों से गोशालक का तात्पर्य श्रमण भगवान महावीर के अनुयायियों से पृथक किसी अन्य निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय से रहा होगा। डा. वाशम, डा. हर्नले, आचार्य बुद्धघोष ने लोहित अभिजाति का अर्थ एक वस्त्र पहनने वाले निर्ग्रन्थ से किया है। (2) उत्तराध्ययन के तेबीसवें अध्याय में केशी श्रमण और गौतम का संवाद है। वह भी इस बात पर प्रकाश डालता है कि महावीर से पूर्व निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय में चार याम को मानने वाला एक सम्प्रदाय था और उस सम्प्रदाय के प्रधान नायक भगवान पार्श्व थे। 4 (3) भगवती, सूत्रकृतांग और उत्तराध्ययन आदि आगमों में ऐसे अनेक पावपित्य श्रमणों का वर्णन आया है, जो चार याम को छोड़कर महावीर के पंच महाव्रत रूप धर्म को 76 (क) भगवती 15-1 (ख) उपासकदशाङ्गः, अध्याय 7 (ग) आवश्यकसूत्र नियुक्ति, मलयगिरिवृत्ति-पूर्वभाग (घ) आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० 283 -292 (ङ) कल्पसूत्र की टीकाएँ (च) त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र (छ) महावीर चरियं, नेमिचन्द्र, गुणचन्द्र आदि 77 (क) मज्झिमनिकाय ||198|250,215 (ख) संयुक्तनिकाय 168, 4398 (ग) दीघनिकाय 152 (घ) दिव्यावदान, पृ० 143 78 सुमंगल विलासिनी, खण्ड 1, पृ० 162 79 तत्रिदं, भंते, पूरणेन कस्सपेन लोहिताभिजाति पञता, निगण्ठा, एक साटका। -सुत्तपिटके, अंगुत्तरनिकाय पालि, छवक-निपाता महावग्गो, छलभिजाति सुत्तं-6-6-3, पृ० 93-941 80 Red (Lohita), niganthas, who wear a single garment. --op. cit. Page 243 81 Encyclopeaedia of Religion and Ethics, Vol. I, Page 262. 82 The Book of Kindred Sayings, Vol. III, Page 17 fn. 83 E.W. Burlinghame : Buddhist Legends, Vol. III, Page 176. 84 उत्तराध्ययन 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy