SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 36 जैसे अशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः । अनुकूल: शतावर्त: पद्मी पद्मनिभेक्षण:।।50।। कालनेमि महावीर: शौरिः शूरजनेश्वरः । त्रिलोकात्मा त्रिलोकेश: केशव: केशिहाहरिः ।।82।। इन श्लोकों में 'शूर: शौरिर्जनेश्वर:' शब्दों के स्थान पर 'शूरः शौरिर्जिनेश्वर:' पाठ मानकर अरिष्टनेमि अर्थ किया गया है। 5 स्मरण रखना चाहिए कि यहाँ पर श्रीकृष्ण के लिए 'शौरि' शब्द का प्रयोग हुआ है। वर्तमान में आगरा जिले के बटेश्वर के सन्निकट शौरिपुर नामक स्थान है। वही प्राचीन युग में यादवों की राजधानी थी। जरासंघ के भय से यादव वहाँ से भागकर द्वारिका में जा बसे। शौरिपुर में ही भगवान अरिष्टनेमि का जन्म हुआ था। एतदर्थ उन्हें 'शौरि' भी कहा गया है। वे जिनेश्वर तो थे ही अत: यहाँ 'शूरः शौरिर्जिनेश्वरः' पाठ अधिक तर्कसंगत लगता है क्योंकि वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में कहीं पर भी शौरिपुर के साथ यादवों का सम्बन्ध नहीं बताया गया है। अत: महाभारत में श्रीकृष्ण को 'शौरि' लिखना विचारणीय अवश्य है। भगवान अरिष्टनेमि का नाम अहिंसा की अखण्ड ज्योति जगाने के कारण इतना अत्यधिक लोकप्रिय हुआ कि महात्मा बुद्ध के नामों की सूची में एक नाम अरिष्टनेमि का भी है। लंकावतार के तृतीय परिवर्तन में बुद्ध के अनेक नाम दिये हैं। वहाँ लिखा है-जिस प्रकार एक ही वस्तु के अनेक नाम प्रयुक्त होते हैं उसी प्रकार बुद्ध के असंख्य नाम हैं। कोई उन्हें तथागत कहते हैं तो कोई उन्हें स्वयम्भू, नायक, विनायक, परिणायक, बुद्ध, ऋषि, वृषभ, ब्राह्मण विष्णु, ईश्वर: प्रधान, कपील, भूतानत, भास्कर, अरिष्टनेमि, राम, व्यास, शुक, इन्द्र, बलि, वरुण आदि नामों से पुकारते हैं।०० इतिहासकारों की दृष्टि में ___ नन्दीसूत्र में ऋषिभाषित (इसिभासियं) का उल्लेख है। उनमें पैंतालीस प्रत्येक बुद्धों के द्वारा निरूपित पैंतालीस अध्ययन हैं। उसमें बीस प्रत्येक बुद्ध भगवान अरिष्टनेमि के समय हुए। रेवताद्रौ जिनोनेमियुगादिविमलाचले। ऋषीणां याश्रमदिव मुक्तिमार्गस्यकारणाम्।। -प्रभासपुराण 49-50 65 मोक्षमार्ग प्रकाश-पं० टोडरमल 66 बौद्ध धर्म दर्शन, पृ० 162 67 नन्दीसूत्र 68 पत्तेयबुद्धमिसिणो, वीसंतित्थेअरिट्ठणेमिस्स। पासस्स य पण्णरस, वीरस्स विलीणमोहस्स।। इसिभासियं, पढमा संगहिणी, गाथा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy