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जैन ग्रन्थों की तरह वैदिक हरिवंशपुराण में श्रीकृष्ण और भगवान आरिष्टनेमि का वंश वर्णन प्राप्त है। उसमें श्रीकृष्ण को अरिष्टनेमि का चचेरा भाई होना लिखा है। जैन और वैदिक परम्परा में अन्तर यही है कि जैन परम्परा में भगवान अरिष्टनेमि के पिता समुद्रविजय को वसुदेव का बड़ा भाई माना है। वे दोनों सहोदर थे; जबकि वैदिक हरिवंशपुराण में चित्रक और वसुदेव को चचेरा भाई माना है। श्रीमद्भागवत में चरित्रक का नाम चित्ररथ दिया है। संभव है वैदिक ग्रन्थों में समुद्र विजय का ही अपर नाम चित्रक या चित्ररथ आया हो।
भगवान अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता
भगवान अरिष्टनेमि 22वें तीर्थंकर हैं। आधुिनिक इतिहासकारों, ने जो कि साम्प्रदायिक संकीर्णता से मुक्त एवं शुद्ध ऐतिहासिक दृष्टि से सम्पन्न है, उनको ऐतिहासिक पुरुषों की पंक्ति में स्थान दिया है, किन्तु साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से इतिहास को भी अन्यथा रूप देने वाले लोग इस तथ्य को स्वीकार नहीं करना चाहते। मगर जब वे कर्मयोगी श्रीकृष्ण को ऐतिहासिक पुरुष मानते हैं तो अरिष्टनेमि भी उसी युग में हुए हैं और दोनों में अत्यन्त निकट पारिवारिक सम्बन्ध थे। अर्थात् श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव तथा अरिष्टनेमि के पिता समुद्रविजय दोनों सहोदर भाई थे। अत: उन्हें ऐतिहासिक पुरुष मानने में संकोच नहीं होना चाहिए।
वैदिक साहित्य के आलोक में
ऋग्वेद में अरिष्टनेमि शब्द चार बार प्रयुक्त हुआ है, स्वस्तिनस्तार्यों अरिष्टनेमिः (ऋग्वेद 111418919)। यहाँ पर अरिष्टनेमि शब्द भगवान अरिष्टनेमि के लिए आया है। किनते ही विद्वानों की मान्यता है कि छान्दोग्योपनिषद् में भगवान अरिष्टनेमि का नाम घोर आंगिरस ऋषि आया है। घोर आंगिरस ऋषि ने श्रीकृष्ण को आत्मयज्ञ की शिक्षा प्रदान की थी। उनकी दक्षिणा, तपश्चर्या, दान, ऋजुभाव, अहिंसा, सत्यवचन रूप थी। धर्मानंद कौशाम्बी की मान्यता है कि आंगिरस भगवान नेमिनाथ का ही नाम था।" घोर शब्द भी जैन श्रमणों के आचार तथा तपस्या की उग्रता बताने के लिए आगम साहित्य में अनेक स्थलों पर व्यवहृत हुआ है। 48 देखिए-भगवान महावीर : एक अनुशीलन-देवेन्द्रमुनि, पृ० 241 से 248 49 (क) ऋग्वेद ||14/896 (ख) ऋग्वेद 1/24/180|10 (ग) ऋग्वेद 3/4|53/17
(घ) ऋग्वेद 10|12|178|1 50 अत: यत् तपोदानमार्जनमहिंसासत्यवचनमितिताअस्यदक्षिणा।
छान्दोग्य उपनिषद् 31714 51 भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृ० 57 52 घोरतवे, घोरे, घोरगुणे, घोरतवस्सी, घोरबम्भचेरवासी।
भगवती 111
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