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________________ 30 अजित तथा अन्य तीर्थंकर बौद्ध थेरगाथा में एक गाथा अजित थेर के नाम की आयी है। उस गाथा की अट्ठकथा में बताया गया है कि ये अजित 91 कल्प से पूर्व प्रत्येक बुद्ध हो गये हैं। जैन साहित्य में अजित नाम के द्वितीय तीर्थंकर हैं और संभवत: बौद्ध साहित्य में उन्हें ही प्रत्येकबुद्ध अजित कहा हो क्योंकि दोनों की योग्यता, पौराणिकता एवं नाम में साम्य है। महाभारत में अजित और शिव को एक चित्रित किया गया है। हमारी दृष्टि से जैन तीर्थंकर अजित ही वैदिक-बौद्ध परम्परा में भी पूज्यनीय रहे हैं और उनके नाम का स्मरण अपनी दृष्टि से उन्होंने किया है। सोरेन्सन ने महाभारत के विशेष नामों का कोष बनाया है। उस कोष में सुपार्श्व, चन्द्र और सुमति ये तीन नाम जैन तीर्थंकरों के आये हैं। महाभारतकार ने इन तीनों को असुर बताया है। वैदिक मान्यता के अनुसार जैनधर्म असुरों का धर्म रहा है। असुर लोग आहेतधर्म के उपासक थे, इस प्रकार का वर्णन जैन साहित्य में नही मिलता है किन्तु विष्णुपुराण, पद्मपुराण, मत्स्य-पुराण,” देवी भागवत और महाभारत आदि में असुरों को आहेत या जैनधर्म का अनुयायी बताया है। अवतारों के निरूपण में जिस प्रकार भगवान ऋषभ को विष्णु का अवतार कहा है वैसे ही सुपार्श्व को कुपथ नामक असुर का अंशावतार कहा है तथा सुमति नामक असुर के लिए वर्णन मिलता है कि वरुण प्रासाद में उनका स्थान दैत्यों और दानवों में था।" महाभारत में विष्णु और शिव के जो सहस्र नाम हैं उन नामों की सूची में श्रेयस, अनन्त, धर्म, शान्ति और संभव ये नाम विष्णु के आये हैं, जो जैनधर्म के तीर्थंकर भी थे। हमारी दृष्टि से इन तीर्थंकरों के प्रभावशाली व्यक्तित्व और कृतित्व के कारण ही इनको वैदिक परम्परा ने भी विष्णु के रूप में अपनाया है। नाम साम्य के अतिरिक्त इन महापुरुषों का सम्बन्ध असुरों से जोड़ा गया है, क्योंकि वे वेद-विरोधी थे। वेद-विरोधी होने के कारण उनका सम्बन्ध श्रमण परम्परा से होना चाहिए यह बात पूर्ण रूप से सिद्ध है। 35 मरणे मे भयं नत्थि, निकन्ति नत्थि जीविते। सन्देहं निक्खिपिस्सामि सम्पजानो पटिस्सतो।। --थेरगाथा 1/20 36 जैनसाहित्य का वृहद् इतिहास, भाग 1, प्रस्तावना, पृ० 26 37 विष्णुपुराण 3/17|18 38 पद्मपुराण सृष्टि खण्ड, अध्याय 13, श्लोक 170 - 413 39 मत्स्यपुराण 24143 - 49 40 देवी भागवत 413154-57 41 जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, पृ० 26 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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