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भगवान ऋषभदेव, आदिनाथ, 24 हिरण्यर्भ" और ब्रह्मा आदि नामों से भी अभिि हुए हैं। 26
जैन और वैदिक साहित्य में जिस प्रकार विस्तार से भगवान ऋषभदेव का चरित्र चित्रित किया गया है वैसा बौद्ध साहित्य में नहीं हुआ है। केवल कहीं कहीं पर नाम निर्देश अवश्य हुआ है। जैसे 'धम्मपद' में “उसभं पवरं वीरं । 27 गाथा में अस्पष्ट रीति से ऋषभदेव और महावीर का उल्लेख हुआ है। 28
बौद्धाचार्य धर्मकीर्ति ने सर्वज्ञ आप्त के उदाहरण में ऋषभ और महावीर का निर्देश किया है और बौद्धाचार्य आर्यदेव भी ऋषभदेव को ही जैनधर्म का आद्य प्रचारक मानते हैं। 'आर्यमंजुश्री मूलकल्प' में भारत के आदि सम्राटों में नाभिपुत्र ऋषभ और ऋषभपुत्र भरत की गणना की गई है। 29
आधुनिक प्रतिभा - सम्पन्न मूर्धन्य चिन्तक भी इस सत्य तथ्य को बिना संकोच स्वीकार करने लगे हैं कि भगवान ऋषभदेव से ही जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ है।
डॉक्टर हर्मन जेकोबी लिखते हैं कि 'इसमें कोई प्रमाण नहीं कि पार्श्वनाथ जैन धर्म के संस्थापक थे। जैन परम्परा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को ही जैनधर्म का संस्थापक मानने में एकमत है। इस मान्यता में ऐतिहासिक सत्य की अत्यधिक संभावना है। 30
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डॉक्टर राधाकृष्णन्,' डाक्टर स्टीवेन्सन" और जयचन्द विद्यालंकार प्रभृति अन्य अनेक विज्ञों का यही अभिमत रहा है । 34
24 ऋषभदेव : एक परिशीलन, पृ० 66 25 (क) हिरण्यगर्भो योगस्य, वेत्ता नान्यः पुरातनः ।
(ख) विशेष विवेचन के लिए देखिए, कल्पसूत्र की प्रस्तावना ।
26 ऋषभदेव : एक परिशीलन - देवेन्द्र मुनि पृ० 91-92 27 धम्मपद 4 | 22
28 इण्डियन हिस्टारिक क्वार्टरली, भाग 3, पृ० 473, 75 29 प्रजापतेः सुतोनाभि तस्यापि आगमुच्यति । नाभिनो ऋषभपुत्रो वै सिद्धकर्म दृढव्रतः ।। 30 इण्डिo एण्टि०, जिल्द 9, पृ० 163
31 भारतीय दर्शन का इतिहास, जिलद 1, पृ० 287
32 कलपसूत्र की भूमिका - डॉ० स्टीवेन्सन
33 भारतीय इतिहास की रूपरेखा, पृ० 384
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34 (क) जैन साहित्य का इतिहास - पूर्व पीठिका, पृ० 108 (ख) हिन्दी विश्वकोष, भाग 4, पृ० 444
- देवेन्द्र मुनि
- महाभारत, शान्तिपर्व
- आर्यमंजुश्री मूलकल्प 390
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- देवेन्द्र मुनि
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