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________________ 27 हित्ती जाति पर भी भगवान ऋषभदेव का प्रभाव जान पड़ता है। उनका मुख्य देवता 'ऋतुदेव' था। उसका वाहन बैल था जिसे 'तेशुव' कहा जाता था, जो 'तित्थयर उसभ' का अपभ्रंश ज्ञात होता है। 5 ऋग्वेद में भगवान ऋषभ का उल्लेख अनेक स्थलों पर हुआ है। किन्तु टीकाकारों ने साम्प्रदायिक भावना के कारण अर्थ में परिवर्तन कर दिया है जिसके कारण कई स्थल विवादास्पद हो गये हैं। जब हम साम्प्रदायिक पूर्वाग्रह का चश्मा उतार कर उन ऋचाओं का अध्ययन करते हैं तब स्पष्ट ज्ञात होता है कि यह भगवान ऋषभदेव के सम्बन्ध में ही कहा गया है। वैदिक ऋषि भक्ति-भावना से विभोर होकर ऋषभदेव की स्तुति करता हुआ कहता है हे आत्मद्रष्टा प्रभो! परम सुख पाने के लिए मैं तेरी शरण में आना चाहता हूँ, क्योंकि तेरा उपदेश और तेरी वाणी शक्तिशाली है-"उनको मैं अवधारण करता हूँ। हे प्रभो! सभी मनुष्यों और देवों में तुम्हीं पहले पूर्वयाया (पूर्वगत ज्ञान के प्रतिपादक) हो।" ऋषभदेव का महत्त्व केवल श्रमण परम्परा में ही नहीं अपितु ब्राह्मण परम्परा में भी रहा है। वहाँ उन्हें आराध्यदेव मानकर मुक्त-कंठ से गुणानुवाद किया गया है। सुप्रसिद्ध वैदिक साहित्य के विद्वान प्रो० विरुपाक्ष एम० ए० वेदतीर्थ और आचार्य विनोबा भावे जैसे बहुश्रुत विचारक ऋग्वेद आदि में ऋषभदेव की स्तुति के स्वर सुनते हैं।" ऋग्वेद में भगवान ऋषभदेव के लिए 'केशी' शब्द का प्रयोग हुआ है। वातरशन मुनि के प्रकरण में केशी की स्तुति की गई है जो स्पष्ट रूप से भगवान ऋषभदेव से सम्बन्धित है। 15 विदेशी संस्कृतियों में अहिंसा-डा० कामताप्रसाद जैन, गुरुदेव रत्नमुनि स्मृति ग्रन्थ, पृ० 403 16 ऋग्वेद संहिता मण्डल। मन्त्र। अध्याय 24 " 26 -आदि-आदि 17 ऋग्वेद 3/342 18 पूज्य गुरुदेव रत्नमुनि स्मृति ग्रन्थ : इतिवृत्त 19 ऋग्वेद 10136] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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