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में हुआ था। जैनदृष्टि से भी कृषि विद्या के जनक ऋषभ देव हैं। उन्होंने असि, मसि और कृषि का प्रारम्भ किया था। भारतवर्ष में ही नहीं अपितु विदेशों में भी कहीं पर वे कृषि के देवता माने जाकर उपास्य रहे हैं, कहीं पर वर्षा के देवता माने गये हैं और कहीं पर 'सूर्यदेव' मानकर पूजे गये हैं। सूर्यदेव-उनके केवलज्ञान का प्रतीक रहा है।
चीन और जापान भी उनके नाम और काम से परिचित रहे हैं। चीनी त्रिपिटकों में उनका उल्लेख मिलता है। जापानी उनकी 'रोकशन' (Rokshab) कहकर पुरकारते हैं।
मध्य एशिया, मिश्र और यूनान तथा फोनेशिया एवं फणिक लोगों की भाषा में वे रिशेफ' कहलाये, जिसका अर्थ सींगोंवाला देवता है जो ऋषभ का अपभ्रंश रूप है।
शिवपुराण के अध्ययन से यह तथ्य और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है।' डाक्टर राजकुमार जैन ने 'ऋषभेदव तथा शिव सम्बन्धी प्राप्य मान्यताएँ' शीर्षक लेख में विस्तार से ऊहापोह किया है कि भगवान ऋषभदेव और शिव दोनों एक थे। अत: जिज्ञासु पाठकों को वह लेख पढ़ने की प्रेरणा देता हूँ।"
अक्कड़ और सुमेरों की संयुक्त प्रवृत्तियों से उत्पन्न बेबीलोनिया की संस्कृति और सभ्यता बहुत प्राचीन मानी जाती है। उनके विजयी राजा हम्मुरावी (2123-2081 ई. पू.) के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि स्वर्ग और पृथ्वी का देवता वृषभ था।"
सुमेर के लोग कृषि के देवता के रूप में अर्चना करते थे जिसे आबू या तामुज कहते थे। वे बैल को विशेष पवित्र समझते थे। सुमेर तथा बाबुल के एक धर्म शास्त्र में ‘अर्हशम्म' का उल्लेख मिलता है। 'अर्ह' शब्द अर्हत् का ही संक्षिप्त रूप जान पड़ता है।
8 (क) भगवान् ऋषभदेव और उनकी लोकव्यापी मान्यता-लेखक, कामताप्रसाद
जैन, आचार्य भिक्षु स्मृति ग्रन्थ द्वि० ख० पृ० 4 (ख) बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ, पृ० 204 9 इत्थं प्रभाव ऋषभोऽचनारः शंकरस्य मे।
सतां गतिर्दीन बन्धुर्नवमः कथितस्तव।। ऋषभस्य चरित्रं हि परमपावनं महत्। स्वर्ग्ययशस्यमायुष्यं श्रोतव्यं वै प्रयत्नतः।।
-शिवपुराण 4|47|48 10 मुनि हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ० 609-629
॥ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ, पृ० 105 12 विल डयूरेन्ट : द स्टोरी ऑव सिविलाइजेशन (अवर ओरियण्टल हेरिटेज) न्यूयार्क
1954, पृ० 219 13 वही, पृ० 127 14 वही, पृ० 199
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