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________________ “प्राचीनकाल में सुमेध नामक परिव्राजक थे। उन्हीं के समय दीपंकर बुद्ध उत्पन्न हुए। लोग दीपंकर बुद्ध के स्वागत हेतु मार्ग सजा रहे थे। सुमेध परिव्राजक उस कीचड़ में मृगचर्म बिछा कर लेट गया। उस मार्ग से जाते समय सुमेध की श्रद्धा व भक्ति को देखकर बुद्ध ने भविष्यवाणी की-“यह कालान्तर में बुद्ध होगा।" उसके पश्चात् सुमेध ने अनेक जन्मों में सभी पारमिताओं की साधना पूर्ण की। उन्होंने विभिन्न कल्पों में चौबीस बुद्धों की सेवा की और अन्त में लुम्बिनी में सिद्धार्थ नाम से उत्पन्न हुए।4 प्रस्तुत कथा में पुनर्जन्म की संसिद्धि के साथ ही विभिन्न कल्पों में चौबीस बुद्ध हुए यह बताया गया है। भदन्त शान्तिभिक्षु का मन्तव्य है कि ईसा पूर्व प्रथम या द्वितीय शताब्दी में चौबीस बुद्धों का उल्लेख हो चुका था।' ऐतिहासिक दृष्टि से जब हम चिन्तन करते हैं तब स्पष्ट ज्ञात होता है कि चौबीस तीर्थंकर और चौबीस बुद्ध की अपेक्षा, वैदिक चौबीस अवतार की कल्पना उत्तरवर्ती है, क्योंकि महाभारत के परिवर्द्धित रूप में भी दशावतारों का ही उल्लेख है। महाभारत से लेकर श्रीमद्भागवत तक के अन्य पुराणों में 10, 11, 12, 14 और 22 तक की संख्या मिलती है किन्तु चौबीस अवतार का स्पष्ट उल्लेख भागवत (217) में ही मिलता है। श्रीमद्भागवत का काल विद्वान अधिक से अधिक ईसा की छठी शताब्दी मानते हैं। वैदिक परम्परा की तरह बुद्धों की संख्या भी निश्चित नहीं है। बुद्धों की संख्या अनन्त भी मानी गई है। ईसा के बाद सात मानुषी बुद्ध माने गए हैं और फिर चौबस बुद्ध माने गये हैं। महाभारत की एक सूची में 32 बुद्धों के नाम मिलते हैं।" किन्तु जैन साहित्य में इस प्रकार की विभिन्नता नहीं है। वहाँ तीर्थंकरों की संख्या में एकरूपता है। चाहे श्वेताम्बर ग्रन्थ हों, चाहे दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थ हों, उनमें सभी जगह चौबीस तीर्थंकरों का ही उल्लेख है। यह भी स्मरण रखना चाहिये कि चौबीस तीर्थंकरों का उल्लेख समवायांग, भगवती जैसे प्राचीन अंग ग्रन्थों में हुआ है। अंग ग्रन्थों के अर्थ के प्ररूपक स्वयं भगवान महावीर हैं और वर्तमान में जो अंग सूत्र प्राप्त हैं उनके सूत्र रचयिता गणधर सुधर्मा हैं। भगवान महावीर को ई० पूर्व 557 में केवलज्ञान हुआ और 527 में उनका परिनिर्वाण हुआ। इस 74 महायान-भदन्त शान्तिभिक्षु की प्रस्तावना, पृ० 15 75 मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद पृ० 24 76 भागवत सम्प्रदाय, पृ० 153, पं० बलदेव उपाध्याय 77 बौद्ध धर्म दर्शन पृ० 121, आचार्य नरेन्द्रदेव 78 वही, पृ० 105 79 दी बौद्धिष्ट इकानोग्राफी, पृ० 10, विजयघोष भट्टाचार्य 80 आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, पृ० 117 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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