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चौबीस बुद्ध
भागवत में जिस प्रकार विष्णु, वासुदेव या नारायण के अनेक अवतारों की चर्चा की गई है उसी प्रकार लंकावतारसूत्र में कहा गया है कि बुद्ध अनन्त रूपों में अवतरित होंगे
और सर्वत्र अज्ञानियों में धर्म- देशना करेंगे। लंकावतारसूत्र में भागवत के समान चौबीस बुद्धों का उल्लेख है।
- सूत्रालंकार में बुद्धत्व- प्राप्ति के लिए प्रयन्त का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि कोई भी मनुष्य प्रारम्भ से ही बुद्ध नहीं होता। बुद्धत्व की उपलब्धि के लिए पुण्य और ज्ञान-संभार की आवश्यकता होती है। तथापि बुद्धों की संख्या में अभिवृद्धि होती गई। प्रारम्भ में यह मान्यता रही कि एक साथ दो बुद्ध नहीं हो सकते किन्तु महायान मत ने एक समय में अनेक बुद्धों का अस्तित्व स्वीकार किया है। उनका मन्तव्य है कि एक लोक में अनेक बुद्ध एक साथ हो सकते हैं।
इससे बुद्धों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है। सद्धर्म पुंडरीक में अनन्त बोधिसत्व बताये गये हैं और उनकी तुलना गंगा की रेती के कणों से की गई है। इन सभी बोधिसत्वों को लोकेन्द्र माना है। उसके पश्चात् यह उपमा बुद्धों के लिए रूढ़ सी हो गई है।
लंकावतारसूत्र में यह भी कहा गया है कि बुद्ध किसी भी रूप को धारण कर सकते हैं, कितने ही सूत्रों में यह भी बताया गया है कि गंगा की रेती के समान असंख्य बुद्ध भूत, वर्तमान और भविष्य में तथागत रूप होते हैं।" जैसे विष्णुपुराण और भागवत में विष्णु के असंख्य अवतार माने गये हैं वैसे ही बुद्ध भी असंख्य अवतरित होते हैं। जहाँ भी लोग अज्ञान अंधकार में छटपटाते हैं वहाँ पर बुद्ध का धर्मोपदेश सुनने को मिलता है।”
बौद्ध साहित्य में प्रारम्भ में पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिए बुद्ध के असंख्य अवतारों की कल्पना की गई किन्तु बाद में चलकर बुद्ध के अवतारों की संख्या 5, 7, 24 और 36 तक सीमित हो गई।
जातककथाओं का दूरेनिदान, अविदूरेनिदान और सन्तिकेनिदान के नाम से जो विभाजन किया है उनमें से दूरेनिदान' में एक कथा इस प्रकार प्राप्त होती है।
66 लंकावतारसूत्र 40, पृ० 229 67 सूत्रालंकार 9177 68 बौद्ध धर्म दर्शन पृ० 104, 105 69 सद्धर्म पुण्डरीक 1419 पृ० 302 70 मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद पृ. 22 7] लंकावतारसूत्र पृ० 198 72 लंकावतार सूत्र 40 पृ० 227 73 जातक अट्ठकथा-दूरेनिदान, पृ० 2 से 36
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